हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस्सलाम जीवन परिचय

     
     
     

ईमाम  अली इब्ने अबी तालिब (अ:स) क़ो जानें  (पवित्र पैग़म्बर (स:अ:व:व) के चचेरे भाई और दामाद)

वो काबे में पैदा हुए (सबूत), 13 रजब 30 अम-अल-फ़ील (हाथियों का साल) और उनकी शहादत मस्जिदे कूफ़ा में ज़हर बुझी हुई तलवार के हमले से 21 रमज़ान 40 हिजरी में हुई! कूफ़ा के बाहर नजफ़ (ईराक़) में उनको दफ़न किया गया!

ईमाम अली (अ:स) के जीवन पर किताबें | निदाए अदालते इंसानी (वोआयेस आफ़ हयूमन जस्टीस) - जोर्ज जरदाख 

नहजुल बलाग़ा - एक अनोखी किताब - ईमाम अली (अ:स) के खुत्बों और खतों  पर आधारित  | नहजुल बलाग़ा - इंडेक्स

 

सहीफ़ा अलाविया - ईमाम अली (अ:स) की खुसुरत दुआओं का संग्रह 

ग़दीर - पवित्र पैग़म्बर (स:अ:अ:व:व) द्वारा उत्तराधिकारी की आधिकारिक नियुक्ति की घटना का विस्तार   

इस्लामी विश्वास के विभिन्न स्कूलों से परंपराओं का संग्रह - हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ:स) की इमामत (संचालन ) और विलायत पर (राहनुमा) - 119 पेज कीिताब

ईमाम अली (अ:स) और अहलेबैत - क़ुरान में   |   पैग़म्बर (स:अ:अ:व:व) की हदीस ईमाम अली (अ:स) पर  | ईमाम अली (अ:स) पर और अधिक जानकारी al-islam.org link

ईमाम अली (अ:स) के दो चमत्कारिक ख़ुत्बे - एक खुतबा जिसमे अरबी के उस शब्द का इस्तेमाल नहीं हुआ जिसमे नुक्ता (दोट्स) हो ( ي ث خ ت ن ظ ف خ ج) और दूसरा खुतबा जिसमे अरबी का पहला शब्द (अलिफ़) का इस्तेमाल नही किया गया

ईमाम अली (अ:स) की गणितीय प्रतिभा   |ईमाम अली (अ:स) के कुछ चुने हुए निर्णय क़ो डाउनलोड करें

ईमाम अली (अ:स) की हर जंग में  भूमिका   | ईमाम अली (अ:स) के नैतिक गुणों का उदाहरण |  ईमाम अली (अ:स) पर पश्चिमी विचारकों की टिपण्णी

ईमाम अली (अ:स) के परिवार के सदस्यों क़ो जानें:-

ज़्यारत -ईमाम अली (अ:स)   |      हज़रत ईमाम अली (अ:स) पर PPT डाउनलोड करें


जन्म

रजब महीने की 13 तारीख क़ो, पैग़म्बर (स:अ:व:व) की हिजरत के 23 साल पहले, अबू तालिब (अ:स) के ख़ानदान में एक बच्चे का जन्म हुआ, जिसके तेज से सारा संसार चमक उठा! कुनाब मक्की ईस जन्म क़ो ऐसे ब्यान करते हैं, "मै और अब्बास (इब्ने अब्दुल मुत्तलिब) साथ बैठे थे, जब हमने अचानक फ़ातिमा बिन्ते असद (स:अ) क़ो काबे की तरफ़ जाते हुए देखा जो उस समय गर्भ की पीड़ा में थीं और यह कहती जा रहीं थीं, "ऐ माबूद! मुझे तुझपर विश्वास है, और तेरे नबी (हज़रत अब्राहम अ:स) पर यक़ीन है, जिन्होंने तेरे आदेश पर ईस घर (काबा) की नींव रखी, ऐ माबूद! तुझे उसी पैग़म्बर (स:अ:व:व) की क़सम है, और तुझे मेरे गर्भ में पलने वाले बच्चे की क़सम है की मेरे प्रसव क़ो मेरे आसान और आरामदायक बना दे"

यह वो वक़्त था जब हम सभी ने अपनी आँखों से काबे की दीवार क़ो फटते हुए देखा जिसमें फ़ातिमा बिन्ते असद (स:अ) दाख़िल हो गयीं, इसके तुरंत बाद ही दीवार फिर पहले की तरह अपनी जगह पर बराबर हो गयी!    

हम सभी घबराए और कांपते हुए अपने घरों क़ो दौड़े ताकि अपने अपने घरों की औरतों काबा भेजना शुरू किया ताकि फ़ातिमा (स:अ) के बच्चे क़ो जन्म देने में  उनकी सहायता मिल सके! हम सभी ने बहुत कोशिश की के काबे का दरवाज़ा ख़ुल जाए लेकिन कोई कामयाबी नहीं मिली! ईस हादसे ने मक्का के सारे निवासियों क़ो हैरत में डाल दिया!

मक्के की औरतें उत्सुकतापूर्वक उस घड़ी का इंतज़ार करने लगीं जब फ़ातिमा बिन्ते असद (स:अ) काबे से बाहर आयें तो मिलें! जब फ़ातिमा (स:अ), एक खूबसूरत बच्चे के साथ काबे से बाहर आयीं और कहा, "अल्लाह ने मुझे मक्के की औरतों में से मुझे चुनकर अपना मेहमान बनाया, और मुझे जन्नत के फल और खाने दिए! मक्के की औरतें जो इनको  चारों ओर से घेरे हुए थीं और इनके साथ वापस जा रहीं थीं, इन्से पूछा, बच्चे का नाम क्या रखा?, उनहोंने जवाब दिया, "      जब मै काबे में थी, तो एक आवाज़ आयी के बच्चे का नाम "अली" रखो!"

 ईमाम अली (अ:स) के काबा में हुए चमत्कारी जन्म के सबूत     |      रुक्न यमनी की तस्वीरें

हाँ! हम इसी पवित्र इंसान, अली (अ:स) की बता कर रहे हैं, जिसका शिशुपण और बचपन इतना शुद्ध और पवित्र तरीक़े से बीता की उनहोंने नहजुल बलागा में खुद ही कह दिया की, "नबी मुझे अपनी गोदी में उठाते थे, गले लगाते थे, फिर खाना क़ो चबा कर मुलायम करते थे और तब मेरे मुंह में डालते थे"

आरंभिक युवावस्था :  

अली इब्ने अबी तालिब (अ:स) अपने ईस उमर के शिक्षाप्रद अवधि क़ो कुछ ईस तरह से दर्शाते हैं, " पैग़म्बर (स:अ:व:व),  हेरा (पहाड़ी का नाम) की गुफाओं में जाते थे और इसे मेरे और पैग़म्बर की अलावा कोई नहीं जानता था, ईस्लाम जब घरों में नहीं पहुंचा था तो वो और उनकी पत्नी ख़दीजा (स:अ) के अलावा कोई मुसलमान नहीं था, इनके अलावा सिर्फ़ मैंने रिसालत की रौशनी देखी, और नुबू'अत की ख़ुशबू पहचानी थी! जब नबी (स:अ:व:व) क़ो ख़ुदा की तरफ़ से यह हुकुम हुआ की अपने परिवार वालों क़ो ईस्लाम लाने की दावत दो तो नबी (स:अ:व:व) के कहने पर अली (अ:स) ने पाने घर पर 40 लोगों क़ो खाने पर बुलाया! जबकि खाना काफ़ी कम था, उन सरे लोगो ने पेट भर कर खाना खाया! जब सभी खाना ख़ा चुके तो पैग़म्बर (स:अ:व:व) उन सारे लोगों क़ो मुखातिब करते हुए बोले, "ऐ अब्दुल मुत्तलिब के बेटों, अल्लाह ने मुझे हुकुम दिया है की मै तुम्हें ईस्लाम क़बूल करने की दावत दूँ और तुम्हें ईस्लाम से परिचित करा दूँ!" फिर कहा, "जो कोई मेरी रिसालत पर यक़ीन रखेगा, और मुझे मदद और सहायता करेगा, वो मेरा भाई, मेरा उत्तराधिकारी और मेरा ख़लीफ़ा होगा!" उन्हों (स:अ:व:व) ने तीन बार ईस बात क़ो दोहराया और तीनों बार अली (अ:स) के इलावा कोई आगे नहीं आया! पैग़म्बर (स:अ:व:व) ने जितनी बार ईस बात क़ो कहा हर बार अली (अ:स) खड़े हुए और अपने यक़ीन और मदद क़ो पैग़म्बर के लिये दोहराया! 

जवानी :

यही वजह रही थी की पैग़म्बर (स:अ:व:व) ने कहा, "यह अली, मेरा भाई है, मेरा उत्तराधिकारी है, और सुने वो जो कहते है, और उनका हुकुम मानो" जब ईमाम अली (अ:स) की उमर अपने आरंभिक यौवन (पुस्र्षता) की तरफ़ बढ़ी, उस वक़्त जब इंसान की सारी ऊर्जा और शक्ति मजबूत और दृढ़ होती है, अली (अ:स) उस समय भी एक परवाने की तरह मोहम्मद के साथ साथ रहे! उन्होंने पैग़म्बर (स:अ:व:व) और ईस्लाम का बचाव अपनी मज़बूत बाजूओं से किया!    

हुनैन की जंग में जब दुश्मनों ने घेरा डाला और मुसलामानों क़ो चारों ओर से घेर लिया, और मुसलमान अपनी जान बचाने के लिये पैग़म्बर (स:अ:व:व) क़ो अकेला छोड़ कर भाग गए, उस वक़्त भी अली (अ:स) और केवल अली (अ:स) ने अपनी जान की परवाह न करते हुए पैग़म्बर मोहम्मद (स:अ:व:व) क़ो बचाया और न सिर्फ़ दुश्मनों क़ो मार भगाया बल्कि  जंग भी जीत ली!

अली (अ:स) ने मरहब क़ो (जो यहूदी सेना का प्रमुख था) खैबर की जंग में मार दिया!  मरहब वो था जिसकी शक्ति और वीरता किसी क़ो भी कंपा देती थी! अली (अ:स) ने उसे दो टुकड़ों में काट दिया, और खैबर के क़िले का दरवाज़ा (जिसे 20 लोग मिलकर खोलते बंद करते थे), उसे उखाड़ कर ढाल की तरह इस्तेमाल किया! और इसे एक बाँध बना कर उस खाई पर ले गए जहां से इस्लामी से खैबर के क़िले में दाख़िल हो सके! ऐसी कई एक घटना अली (अ:स) के ईमान, यक़ीन, निष्ठा, आत्मा, साहस, आत्मबलिदान, और भक्ति के गवाह और प्रमाण हैं! 

आत्म बलिदान और भक्ति

इसमें कोई शक नहीं की हर व्यक्ति अपनी आत्मा क़ो प्यार करता है, और शायद ही कभी इसे किसी और व्यक्ति पर बलिदान करता है, लेकिन चूँकि अली (अ:स) अपनी आत्मा से ज़्यादा पैग़म्बर मोहम्मद (स:अ:व:व) की आत्मा से प्यार करते थेउन्होंने अपनी ज़िन्दगी क़ो पैग़म्बर पर बलिदान करने का निश्चय किया! यह घटना ईस प्रकार घटित हुई :

जब कई भगवान् क़ो मानने वालों ने यह देखा की उनकी ज़िंदगी ख़तरे में है, तो उन सभी ने एकजुट होकर एक निश्चय किया की पैग़म्बर (स:अ:व:व) क़ो उनकी बेखबरी में ह्त्या कर दें! इसी कारण वो सभी "दर-उन-नदवा" पर जमा हुए, और मोहम्मद (स:अ:व:व) क़ो मारने के लिये हर परिवार से एक-एक सदस्य हर कबीले से शामिल किया गया, ताकि बाद में कोई किसी से बदला न ले सके!

मोहम्मद (स:अ:व:व) क़ो ईस साज़िश का पता अल्लाह की तरफ़ से लग़ गया! अल्लाह ने उन्हें (स:अ:व:व) हुकुम दिया की मक्का से रात के अँधेरे में निकल जाएँ! उस समय मोहम्मद (स:अ:व:व) क़ो एक ऐसे शख्स की ज़रुरत थी जो उनका हमराज़ और भरोसेमंद थाऔर जो उनके ऊपर अपनी कुर्बानी दे सकता था!    

उस वक़्त उनके पास अली (अ:स) के अलावा कोई न था जिनको वो अपना हमराज़ बना सकते थे और उन्होंने अली (अ:स) से कहा, "अल्लाह ने मुझ से कहा है की दुश्मन घरों क़ो तोड़ कर मुझे मारने के लिये अन्दर घुस आयेंगे, इसलिए तुम मेरे बिस्तर पर सो जाओ, ताकि मै रात के अँधेरे में निकल जाऊं" अली मुस्कुराए और ईस प्रस्ताव क़ो मान लिया! 

तब  वो वक़्त आया जब रात के अन्धकार ने सभी चीज़ क़ो ढांक लिया, और अली (अ:स) पैग़म्बर (स:अ:व:व) की बिस्तर पर शांति से सोये रहे, और पैग़म्बर(स:अ:व:व) रात के अन्धकार में अपने घर से निकल कर सौर (एक पहाड़ी) की गुफाओं की तरफ़ चले गए! दुश्मनों ने पैग़म्बर (स:अ:व:व) के घर का मुहासिरा कर लिया, और अपनी तलवारें और भाले तैय्यार कर लिये ताकि मोहम्मद (स:अ:व:व) क़ो क़त्ल कर सकें! जैसे ही उन्हें हमले का संकेत मिला वो घर के अन्दर अपनी नंगी तलवारों समेत घुस पड़े और हमला करना ही चाहते थे की उन्होंने देखा बिस्तर पर अली (अ:स) सोये हैं! वो तुरंत ही घर से बाहर हताश और हैरान निकल आये,और कुछ घुड़सवारों क़ो मोहम्मद (स:अ:व:व) की खोज में रवाना किया! कुछ ही समय में वो घुड़सवार भी हारे और निराशा से भरे हुए वापस आ गए!

 

नाम व अलक़ाब (उपाधियाँ) Amir-al-Mu'mineen, Al-Shahid, Al-Murtaza, Abul-Hasan(I), Abu Turab
माता पिता  
जन्म तिथि व जन्म स्थान  
शहादत (स्वर्गवास)  
समाधि  

 
NAME ALI (A.S).
FATHER'SNAME ABU TALIB S/O ABDUL MUTALLIB.
MOTHER'S NAME FATIMA D/O ASAD.
DATE OF BIRTH 13 RAJAB.
PLACE OF BIRTH KHANA E KAABA.
WIVES NAME FATIMA D/O/MOHAMMAD (P.B.U.H), LAILA, USMA, UMAMA, UMMULBANEEN.
SON'S NAME HASAN, HUSSAIN, MOHAMMAD, HANAFIA, ABBAS, UMER, ABDULLAH, YAHIYA, M.AZGHAR, JAFER, USMAN.
DAUGHTER'S NAME ZAINAB, UMME KULSOOM, RUQAIYA, RAMALA, NAFEESA,KHADIJA,ZAINAB-E-SUGHRA, UMMA HANI, JAMANA, UMAMA, MEHMOONA, MUSALMA, FATIMA.
FAMILY NAME ABUL HASAN.
TITLE AMEER UL MOMINEEN, MURTAZA, ABU TURAB.
AGE 63 YEARS.
MARTYRDOM 21st RAMAZAN.
BURRIED AT NAJAF.



नाम व अलक़ाब (उपाधियाँ)
आपका नाम अली व आपके अलक़ाब अमीरुल मोमेनीन, हैदर, कर्रार, कुल्ले ईमान, सिद्दीक़,फ़ारूक़, अत्यादि हैं।

माता पिता
आपके पिता हज़रतअबुतालिब पुत्र हज़रत अब्दुल मुत्तलिब व आपकी माता आदरनीय फ़तिमा पुत्री हज़रतअसद थीं।

जन्म तिथि व जन्म स्थान
आप का जन्म रजब मास की 13वी तारीख को हिजरत से 23वर्ष पूर्व मक्का शहर के विश्व विख्यात व अतिपवित्र स्थान काबे मे हुआ था। आप अपने माता पिता के चौथे पुत्र थे।

पालन पोषण

आप (6) वर्ष की आयु तक अपने माता पिता के साथ रहे। बाद मे आदरनीय पैगम्बर हज़रतअली को अपने घर ले गये।इस प्रकार सात वर्षों तक हज़रतअली पैगम्बर की देखरेख मे प्रशिक्षित हुए। हज़रतअली ने अपने एक प्रवचन मे कहा कि मैं पैगम्बर के पीछे पीछे इस तरह चलता था जैसे ऊँटनी का बच्चा अपनी माँ के पीछे चलता है। पैगम्बर प्रत्येक दिन मुझे एक सद्व्यवहार सिखाते व उसका अनुसरन करने को कहते थे।
हज़र तअली सर्वप्रथम मुसलमान के रूप मे

जब आदरनीय मुहम्मद (स0)ने अपने पैगमबर होने की घोषणा की तो हज़रतअली वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने आपके पैगम्बर होने को स्वीकार किया तथा आप पर ईमान लाए।

महान् सहाबी इब्ने अब्बास ने कहा कि अली वह प्रथम व्यक्ति हैं जिन्होंने पैगम्बर के साथ नमाज़ पढ़ी। वह कहते हैं कि सोमवार को आदरनीय मुहम्मद ने अपने पैगम्बर होने की घोषणा की तथा मंगलवार से हज़रतअली ने उन पीछे नमाज़ पढ़ना आरम्भ कर दिया था।

हज़रत अली पैगम्बर के उत्तराधिकारी के रूप मे

हज़रत पैगम्बर ने अपने स्वर्गवास से तीन मास पूर्व हज से लौटते समय ग़दीरे ख़ुम नामक स्थान पर अल्लाह के आदेश से सन् 10 हिजरी मे ज़िलहिज्जा मास की 18वी तिथि को हज़रतअली को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। परन्तु आदरनीय पैगम्बर के स्वर्ग वास के बाद कुछ लोगों ने षड़यन्त्र रचकर इस पदको स्वंय ग्रहण कर लिया। प्रथम,द्वितीय व तृतीय खलीफ़ाओं के देहान्त के बाद जनता जागरूक हुई। तथा उन्होने 25 वर्ष के अन्तराल के बाद पैगम्बर के वास्तविक उत्तराधिकारी के हाथों पर बैअत की। इस प्रकार हज़रतअली ने ख़िलाफ़त पद को सुशोभित किया।
हज़रत अली द्वारा किये गये सुधार

अपने पाँच वर्षीय शासन काल मे विभिन्न युद्धों, विद्रोहों, षड़यन्त्रों, कठिनाईयों व समाज मे फैली विमुख्ताओं का सामना करते हुए हज़रतअली ने तीन क्षेत्रो मे सुधार किये जो निम्ण लिखित हैं।
अधिकारिक सुधार

उन्होने अधिकारिक क्षेत्र मे सुधार करके जनता को समान अधिकार प्रदान किये। शासन की ओर से दी जाने वाली धनराशी के वितरण मे व्याप्त भेद भाव को समाप्त करके समानता को स्थापित किया। उन्होंने कहा कि निर्बल व्यक्ति मेरे समीप हज़रतहैं मैं उनको उनके अधिकार दिलाऊँगा।व अत्याचारी व्यक्ति मेरे सम्मुख नीच है मैं उनसे दूसरों के अधिकारों को छीनूँगा।
आर्थिक सुधार

हज़रतअली ने आर्थिक क्षेत्र मे यह सुधार किया कि जो सार्वजनिक सम्पत्तियां तीसरे ख़लीफ़ा ने समाज के कुछ विशेष व्यक्तियों को दे दी थीं उनसे उनको वापिस लिया। तथा जनता को अपनी नीतियों से अवगत कराते हुए कहा कि मैं तुम मे से एक हूँ जो वस्तुऐं मेरे पास हैं वह आपके पास भी हैं। जो कर्तव्य आप लोगों के हैं वह मेरे भी हैं। (अर्थात मैं आप लोगों से भिन्न नही हूँ न आपसे कम कार्य करता हूँ न आप से अधिक सम्पत्ति रखता हूँ)
प्रशासनिक सुधार

हज़रतअली (अ0) ने प्रशासनिक क्षेत्र मे सुधार हेतू दो उपाये किये।

(1) तीसरे ख़लीफ़ा द्वारा नियुक्त किये गये गवर्नरो को निलम्बित किया।

(2) भ्रष्ट अधिकारियों को पदमुक्त करके उनके स्थान पर ईमानदार व्यक्तियों को नियुक्त किया।
इमाम अली व राजकोष

इमाम अली राजकोष का विशेष ध्यान रखते थे, वह किसी को भी उसके हक़ से अधिक नही देते थे। वह राजकोष को सार्वजनिक सम्पत्ति मानते थे। तथा राजकोष के धन को अपने नीजी कार्यो मे व्यय करने को जनता के घरों मे चोरी करने के समान मानते थे। एक बार आप रात्री के समय राजकोष के कार्यों मे वयस्त थे। उसी समय आपका एक मित्र भेंट के लिए आया जब वह बैठ गया और बातें करने लगा तो आपने जलते हुए चिराग़ (दिआ) को बुझा दिया। और अंधेरे मे बैठकर बाते करने लगे। आपके मित्र ने चिराग़ बुझाने का कारण पूछा तो आपने उत्तर दिया कि यह चिराग़ राजकोष का है।और आपसे बातचीत मेरा व्यक्तिगत कार्य है अतः इसको मैं अपने व्यक्तिगत कार्य के लिए प्रयोग नही कर सकता। क्योंकि ऐसा करना समस्त जनता के साथ विश्वासघात है।

हज़रत इमाम अली की शहादत (स्वर्गवास)
हज़रत इमाम अली सन् 40 हिजरी के रमज़ान मास की 19वी तिथि को जब सुबह की नमाज़ पढ़ने के लिए गये तो सजदा करते समय अब्दुर्रहमान पुत्र मुलजिम ने आपके ऊपर तलवार से हमला किया जिससे आप का सर बहुत अधिक घायल हो गया तथा दो दिन पश्चात रमज़ान मास की 21वी रात्री मे नमाज़े सुबह से पूर्व आपने इस संसार को त्याग दिया।

समाधि

आपकी शहादत के समय स्थिति बहुत भयंकर थी। चारो ओर शत्रुता व्याप्त थी तथा यह भय था कि शत्रु कब्र खोदकर लाश को निकाल सकते हैँ। अतः इस लिए आपको बहुत ही गुप्त रूप से दफ़्न कर दिया गया।एक लम्बे समय तक आपके परिवार व घनिष्ठ मित्रों के अतिरिक्त कोई भी आपकी समाधि से परिचित नही था। परन्तु एक लम्बे अन्तराल के बाद अब्बासी ख़लीफ़ा हारून रशीद के समय मे यह भेद खुल गया कि इमाम अली की समाधि नजफ़ नामक स्थान पर है। बाद मे आपके अनुयाईयों ने आपकी समाधि का विशाल व वैभवपूर्ण निर्माण कराया। वर्तमान समय मे प्रति वर्ष लाखों दर्शनार्थी आपकी समाधि पर जाकर सलाम करते हैं।

 

द।सतान-ए-तिब्बी अमीर-उल-मोमिनीन
 
 एक मर्तबा अमीर-उल-मोमिनीन अली इबन अबी तालिब, बस्रा की एक शाहराह से गुज़र रहे थे देखा एक मुक़ाम पर कसीर मजमा है और लोग जौक़ दर जौक़ चले आ रहे हैं , आप भी बढ़े और देखा कि मजमा के दरमयान एक ख़ुशपोश, ख़ुशरू जवान है। लोग शीशियों में कोई अपना ख़ून, कोई अपना इदरार(पेशाब) लिए उस को दिखला रहे हैं। वो हर एक को उस की मर्ज़ के मुताबिक़ दवा तजवीज़ कररहा है। लोगों से मालूम हुआ कि ये बड़ा मशहूर-ओ-मारूफ़ हाज़िक़ तबीब है। अमीर-उल-मोमिनीन आगे बढ़े, सलाम किया, और फ़रमाया! किया दर्द-ए-गुनाह की भी कोई दवा आप के पास है? तबीब:। (बग़ौर देख कर बोला) गुनाह भी कोई दर्द या बीमारी है? 
 
 अमीर-उल-मोमिनीन:। ने फ़रमाया, हाँ। गुनाह बड़ी मुहलक तरीन बीमारी है तबीब:। ता देर सर झुकाए सोचता रहा, बाद ताम्मुल कहा। अगर गुनाह बीमारी है तो क्या कोई उसका ईलाज आप के पास है? अमीर-उल-मोमिनीन:। बेशक में गुनाह का ईलाज जानता हूँ और दर्द की दवा रखता हूँ। तबीब:। ज़रा में भी सुनूं कि उस की क्या दवा है। और कौन सा नुस्ख़ा है जिस के ज़रीया आप उसका ईलाज करते हैं। 
 
 
अमीर-उल-मोमिनीन:। (तबीब से फ़रमाया) अच्छा उठो और आओ, ज़रा मेरे हमराह बाग-ए-ईमान में चलो, वहां पहुंच कर नीयत के दरख़्त के कुछ रेशे। दाना पशेमानी क़दरे।बर्ग-ए-तदब्बुर क़दरे। तुख़्म परहेज़गारी क़दरे। समर फ़हम क़दरे। शाख़हाए यक़ीन क़दरे। मग़ज़ इख़लास क़दरे। पोस्त साई क़दरे। ज़हर मुहरा तवाज़ो मख़तसन१ और तौबा का पिछला हिस्सा लो तरकीब:।इन सब दवाओं को बाहोश-ओ-हवास इत्मीनान क़लब से तौफ़ीक़ के हाथों और तसदीक़ की उनगलीयों से तहक़ीक़ के पियाला में डालो। और आँखों के पानी में भिगो दो। काफ़ी देर के बाद फिर सब को उम्मीद की पतीली (देगची) में डाल कर शौक़ की आग में जोश दो। इस क़दर कि मादा फ़ासदा फ़ना हो जाये और ख़ालिस चीज़ रह जाये। इस के बाद तस्लीम-ओ-रज़ा की तश्तरी में रख कर तौबा-ओ-इस्तिग़फ़ार की फूंकों से ठंडा करो। फिर उसे ऐसी जगह बैठ कर जहां सिवाए ख़ुदा के और कोई ना हो । पी लो । ये है वो दवा जो गुनाह के दर्द को दफ़ा और मुसीबत के ज़ख़मों को भर देती है। फिर कोई दर्द या ज़ख़म का असर बाक़ी नहीं रहता। तबीब ये सन कर हैरान हो गया।
 
 
कुछ देर ख़ामोश रह कर वो आगे बढ़ कर अमीर-उल-मोमिनीन के क़दमों पर गया।


।। अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिंव वा आलिमुहम्मद।।