हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस्सलाम जीवन परिचय
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हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस्सलाम जीवन परिचय ईमाम अली इब्ने अबी तालिब (अ:स) क़ो जानें (पवित्र पैग़म्बर (स:अ:व:व) के चचेरे भाई और दामाद) वो काबे में पैदा हुए (सबूत), 13 रजब 30 अम-अल-फ़ील (हाथियों का साल) और उनकी शहादत मस्जिदे कूफ़ा में ज़हर बुझी हुई तलवार के हमले से 21 रमज़ान 40 हिजरी में हुई! कूफ़ा के बाहर नजफ़ (ईराक़) में उनको दफ़न किया गया! ईमाम अली (अ:स) के जीवन पर किताबें | निदाए अदालते इंसानी (वोआयेस आफ़ हयूमन जस्टीस) - जोर्ज जरदाख नहजुल बलाग़ा - एक अनोखी किताब - ईमाम अली (अ:स) के खुत्बों और खतों पर आधारित | नहजुल बलाग़ा - इंडेक्स
सहीफ़ा अलाविया - ईमाम अली (अ:स) की खुसुरत दुआओं का संग्रह ग़दीर - पवित्र पैग़म्बर (स:अ:अ:व:व) द्वारा उत्तराधिकारी की आधिकारिक नियुक्ति की घटना का विस्तार इस्लामी विश्वास के विभिन्न स्कूलों से परंपराओं का संग्रह - हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ:स) की इमामत (संचालन ) और विलायत पर (राहनुमा) - 119 पेज कीकिताब ईमाम अली (अ:स) और अहलेबैत - क़ुरान में | पैग़म्बर (स:अ:अ:व:व) की हदीस ईमाम अली (अ:स) पर | ईमाम अली (अ:स) पर और अधिक जानकारी al-islam.org link ईमाम अली (अ:स) के दो चमत्कारिक ख़ुत्बे - एक खुतबा जिसमे अरबी के उस शब्द का इस्तेमाल नहीं हुआ जिसमे नुक्ता (दोट्स) हो ( ي ث خ ت ن ظ ف خ ج) और दूसरा खुतबा जिसमे अरबी का पहला शब्द (अलिफ़) का इस्तेमाल नही किया गया ईमाम अली (अ:स) की गणितीय प्रतिभा |ईमाम अली (अ:स) के कुछ चुने हुए निर्णय क़ो डाउनलोड करें ईमाम अली (अ:स) की हर जंग में भूमिका | ईमाम अली (अ:स) के नैतिक गुणों का उदाहरण | ईमाम अली (अ:स) पर पश्चिमी विचारकों की टिपण्णी
ज़्यारत -ईमाम अली (अ:स) | हज़रत ईमाम अली (अ:स) पर PPT डाउनलोड करें जन्म रजब महीने की 13 तारीख क़ो, पैग़म्बर (स:अ:व:व) की हिजरत के 23 साल पहले, अबू तालिब (अ:स) के ख़ानदान में एक बच्चे का जन्म हुआ, जिसके तेज से सारा संसार चमक उठा! कुनाब मक्की ईस जन्म क़ो ऐसे ब्यान करते हैं, "मै और अब्बास (इब्ने अब्दुल मुत्तलिब) साथ बैठे थे, जब हमने अचानक फ़ातिमा बिन्ते असद (स:अ) क़ो काबे की तरफ़ जाते हुए देखा जो उस समय गर्भ की पीड़ा में थीं और यह कहती जा रहीं थीं, "ऐ माबूद! मुझे तुझपर विश्वास है, और तेरे नबी (हज़रत अब्राहम अ:स) पर यक़ीन है, जिन्होंने तेरे आदेश पर ईस घर (काबा) की नींव रखी, ऐ माबूद! तुझे उसी पैग़म्बर (स:अ:व:व) की क़सम है, और तुझे मेरे गर्भ में पलने वाले बच्चे की क़सम है की मेरे प्रसव क़ो मेरे आसान और आरामदायक बना दे" यह वो वक़्त था जब हम सभी ने अपनी आँखों से काबे की दीवार क़ो फटते हुए देखा जिसमें फ़ातिमा बिन्ते असद (स:अ) दाख़िल हो गयीं, इसके तुरंत बाद ही दीवार फिर पहले की तरह अपनी जगह पर बराबर हो गयी! हम सभी घबराए और कांपते हुए अपने घरों क़ो दौड़े ताकि अपने अपने घरों की औरतों काबा भेजना शुरू किया ताकि फ़ातिमा (स:अ) के बच्चे क़ो जन्म देने में उनकी सहायता मिल सके! हम सभी ने बहुत कोशिश की के काबे का दरवाज़ा ख़ुल जाए लेकिन कोई कामयाबी नहीं मिली! ईस हादसे ने मक्का के सारे निवासियों क़ो हैरत में डाल दिया! मक्के की औरतें उत्सुकतापूर्वक उस घड़ी का इंतज़ार करने लगीं जब फ़ातिमा बिन्ते असद (स:अ) काबे से बाहर आयें तो मिलें! जब फ़ातिमा (स:अ), एक खूबसूरत बच्चे के साथ काबे से बाहर आयीं और कहा, "अल्लाह ने मुझे मक्के की औरतों में से मुझे चुनकर अपना मेहमान बनाया, और मुझे जन्नत के फल और खाने दिए! मक्के की औरतें जो इनको चारों ओर से घेरे हुए थीं और इनके साथ वापस जा रहीं थीं, इन्से पूछा, बच्चे का नाम क्या रखा?, उनहोंने जवाब दिया, " जब मै काबे में थी, तो एक आवाज़ आयी के बच्चे का नाम "अली" रखो!" ईमाम अली (अ:स) के काबा में हुए चमत्कारी जन्म के सबूत | रुक्न यमनी की तस्वीरें हाँ! हम इसी पवित्र इंसान, अली (अ:स) की बता कर रहे हैं, जिसका शिशुपण और बचपन इतना शुद्ध और पवित्र तरीक़े से बीता की उनहोंने नहजुल बलागा में खुद ही कह दिया की, "नबी मुझे अपनी गोदी में उठाते थे, गले लगाते थे, फिर खाना क़ो चबा कर मुलायम करते थे और तब मेरे मुंह में डालते थे" आरंभिक युवावस्था : अली इब्ने अबी तालिब (अ:स) अपने ईस उमर के शिक्षाप्रद अवधि क़ो कुछ ईस तरह से दर्शाते हैं, " पैग़म्बर (स:अ:व:व), हेरा (पहाड़ी का नाम) की गुफाओं में जाते थे और इसे मेरे और पैग़म्बर की अलावा कोई नहीं जानता था, ईस्लाम जब घरों में नहीं पहुंचा था तो वो और उनकी पत्नी ख़दीजा (स:अ) के अलावा कोई मुसलमान नहीं था, इनके अलावा सिर्फ़ मैंने रिसालत की रौशनी देखी, और नुबू'अत की ख़ुशबू पहचानी थी! जब नबी (स:अ:व:व) क़ो ख़ुदा की तरफ़ से यह हुकुम हुआ की अपने परिवार वालों क़ो ईस्लाम लाने की दावत दो तो नबी (स:अ:व:व) के कहने पर अली (अ:स) ने पाने घर पर 40 लोगों क़ो खाने पर बुलाया! जबकि खाना काफ़ी कम था, उन सरे लोगो ने पेट भर कर खाना खाया! जब सभी खाना ख़ा चुके तो पैग़म्बर (स:अ:व:व) उन सारे लोगों क़ो मुखातिब करते हुए बोले, "ऐ अब्दुल मुत्तलिब के बेटों, अल्लाह ने मुझे हुकुम दिया है की मै तुम्हें ईस्लाम क़बूल करने की दावत दूँ और तुम्हें ईस्लाम से परिचित करा दूँ!" फिर कहा, "जो कोई मेरी रिसालत पर यक़ीन रखेगा, और मुझे मदद और सहायता करेगा, वो मेरा भाई, मेरा उत्तराधिकारी और मेरा ख़लीफ़ा होगा!" उन्हों (स:अ:व:व) ने तीन बार ईस बात क़ो दोहराया और तीनों बार अली (अ:स) के इलावा कोई आगे नहीं आया! पैग़म्बर (स:अ:व:व) ने जितनी बार ईस बात क़ो कहा हर बार अली (अ:स) खड़े हुए और अपने यक़ीन और मदद क़ो पैग़म्बर के लिये दोहराया! जवानी : यही वजह रही थी की पैग़म्बर (स:अ:व:व) ने कहा, "यह अली, मेरा भाई है, मेरा उत्तराधिकारी है, और सुने वो जो कहते है, और उनका हुकुम मानो" जब ईमाम अली (अ:स) की उमर अपने आरंभिक यौवन (पुस्र्षता) की तरफ़ बढ़ी, उस वक़्त जब इंसान की सारी ऊर्जा और शक्ति मजबूत और दृढ़ होती है, अली (अ:स) उस समय भी एक परवाने की तरह मोहम्मद के साथ साथ रहे! उन्होंने पैग़म्बर (स:अ:व:व) और ईस्लाम का बचाव अपनी मज़बूत बाजूओं से किया! हुनैन की जंग में जब दुश्मनों ने घेरा डाला और मुसलामानों क़ो चारों ओर से घेर लिया, और मुसलमान अपनी जान बचाने के लिये पैग़म्बर (स:अ:व:व) क़ो अकेला छोड़ कर भाग गए, उस वक़्त भी अली (अ:स) और केवल अली (अ:स) ने अपनी जान की परवाह न करते हुए पैग़म्बर मोहम्मद (स:अ:व:व) क़ो बचाया और न सिर्फ़ दुश्मनों क़ो मार भगाया बल्कि जंग भी जीत ली! अली (अ:स) ने मरहब क़ो (जो यहूदी सेना का प्रमुख था) खैबर की जंग में मार दिया! मरहब वो था जिसकी शक्ति और वीरता किसी क़ो भी कंपा देती थी! अली (अ:स) ने उसे दो टुकड़ों में काट दिया, और खैबर के क़िले का दरवाज़ा (जिसे 20 लोग मिलकर खोलते बंद करते थे), उसे उखाड़ कर ढाल की तरह इस्तेमाल किया! और इसे एक बाँध बना कर उस खाई पर ले गए जहां से इस्लामी से खैबर के क़िले में दाख़िल हो सके! ऐसी कई एक घटना अली (अ:स) के ईमान, यक़ीन, निष्ठा, आत्मा, साहस, आत्मबलिदान, और भक्ति के गवाह और प्रमाण हैं! आत्म बलिदान और भक्ति इसमें कोई शक नहीं की हर व्यक्ति अपनी आत्मा क़ो प्यार करता है, और शायद ही कभी इसे किसी और व्यक्ति पर बलिदान करता है, लेकिन चूँकि अली (अ:स) अपनी आत्मा से ज़्यादा पैग़म्बर मोहम्मद (स:अ:व:व) की आत्मा से प्यार करते थे, उन्होंने अपनी ज़िन्दगी क़ो पैग़म्बर पर बलिदान करने का निश्चय किया! यह घटना ईस प्रकार घटित हुई : जब कई भगवान् क़ो मानने वालों ने यह देखा की उनकी ज़िंदगी ख़तरे में है, तो उन सभी ने एकजुट होकर एक निश्चय किया की पैग़म्बर (स:अ:व:व) क़ो उनकी बेखबरी में ह्त्या कर दें! इसी कारण वो सभी "दर-उन-नदवा" पर जमा हुए, और मोहम्मद (स:अ:व:व) क़ो मारने के लिये हर परिवार से एक-एक सदस्य हर कबीले से शामिल किया गया, ताकि बाद में कोई किसी से बदला न ले सके! मोहम्मद (स:अ:व:व) क़ो ईस साज़िश का पता अल्लाह की तरफ़ से लग़ गया! अल्लाह ने उन्हें (स:अ:व:व) हुकुम दिया की मक्का से रात के अँधेरे में निकल जाएँ! उस समय मोहम्मद (स:अ:व:व) क़ो एक ऐसे शख्स की ज़रुरत थी जो उनका हमराज़ और भरोसेमंद था, और जो उनके ऊपर अपनी कुर्बानी दे सकता था! उस वक़्त उनके पास अली (अ:स) के अलावा कोई न था जिनको वो अपना हमराज़ बना सकते थे और उन्होंने अली (अ:स) से कहा, "अल्लाह ने मुझ से कहा है की दुश्मन घरों क़ो तोड़ कर मुझे मारने के लिये अन्दर घुस आयेंगे, इसलिए तुम मेरे बिस्तर पर सो जाओ, ताकि मै रात के अँधेरे में निकल जाऊं" अली मुस्कुराए और ईस प्रस्ताव क़ो मान लिया! तब वो वक़्त आया जब रात के अन्धकार ने सभी चीज़ क़ो ढांक लिया, और अली (अ:स) पैग़म्बर (स:अ:व:व) की बिस्तर पर शांति से सोये रहे, और पैग़म्बर(स:अ:व:व) रात के अन्धकार में अपने घर से निकल कर सौर (एक पहाड़ी) की गुफाओं की तरफ़ चले गए! दुश्मनों ने पैग़म्बर (स:अ:व:व) के घर का मुहासिरा कर लिया, और अपनी तलवारें और भाले तैय्यार कर लिये ताकि मोहम्मद (स:अ:व:व) क़ो क़त्ल कर सकें! जैसे ही उन्हें हमले का संकेत मिला वो घर के अन्दर अपनी नंगी तलवारों समेत घुस पड़े और हमला करना ही चाहते थे की उन्होंने देखा बिस्तर पर अली (अ:स) सोये हैं! वो तुरंत ही घर से बाहर हताश और हैरान निकल आये,और कुछ घुड़सवारों क़ो मोहम्मद (स:अ:व:व) की खोज में रवाना किया! कुछ ही समय में वो घुड़सवार भी हारे और निराशा से भरे हुए वापस आ गए!
द।सतान-ए-तिब्बी अमीर-उल-मोमिनीन
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