दहरुल अर्ज़  के अमाल ﴿

25 ज़िलकाद - ज़मीन का बिछाया जाना - मफ़ा'तीह से लिया गया 

पचीस्वीं (25) ज़ीक़ाद का दिन

यह साल भर के 4 दिनों में से एक है की जिनमें रोजा रखने की ख़ास फजीलत है! एक रिवायत में है की इस दिन का रोज़ा 70 साल के रोज़े की तरह है और एक रिवायत में है की इस दिन का रोज़ा 70 साल के गुनाहों का कफ़्फ़ारा है, जो शख्स इस दिन रोजा रखे और इसकी रात में इबादत करे तो इसके लिए 100 साल की इबादत लिखी जायेगी! आज के दिन रोज़ा रखने वाले के लिए हर वोह चीज़ इस्तग्फ़ार करेगी जो ज़मीन और आसमान में है! यह वोह दिन है, जिसमें खुदा की रहमत दुन्या में आम होती है, इस दिन ज़िक्र व इबादत के लिए जमा होने का बहुत बड़ा अजर है! आज के दिन में ग़ुस्ल रोजा और ज़िक्र व इबादत के इलावा 2 अमल हैं : 

 

इनमें से पहला अमल वोह नमाज़ है जो क़ुम्मी उलमा की किताब में मर्वी है और यह 2 रक्'अत नमाज़ है जो चाश्त के वक़्त (जोहर के वक़्त के करीब लेकिन इस्ससे पहले) पढ़ी जाती है जिसकी हर रक्'अत में सुराः अल'हम्द के बाद 5 मर्तबा सुराः शम्स पढ़े और नमाज़ का सलाम देने के बाद यह दुआ पढ़े:

 

शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है 

बिस्मिल्लाह अर'रहमान अर'रहीम 

بِسْمِ اللهِ الرَحْمنِ الرَحیمْ

नहीं है कोई ताक़त व क़ुव्वत मगर वोही जो बुलंद व बरतर खुदा से मिलती है 

 

 

لاَ حَوْلَ وَلاَ قُوَّةَ إِلاَّ بِاللهِ الْعَلِیِّ الْعَظِیمِ،

फिर दुआ करे और यह पढ़े :

ऐ ग़लतियों और गुनाहों को माफ करने वाले मेरी हर गल्तियों और गुनाहों को माफ़ फ़रमा, ऐ दुआओं के कबूल करने वाले मेरी दुआ कबूल कर ले, ऐ आवाज़ों के सुन्ने वाले मेरी आवाज़ सुन ले मुझ पर रहम कर मेरे गुनाहों और जो कुछ मुझ से सरज़द हुआ है इसे दर ग़ुज़र फ़रमा, ऐ जलालत और बुज़ुर्गी के मालिक 

 

 

یَا مُقِیلَ الْعَثَراتِ أَقِلْنِی عَثْرَتِی،

یَا مُجِیبَ الدَّعَوَاتِ أَجِبْ دَعْوَتِی، یَا سامِعَ الْاَصْواتِ اِسْمَعْ صَوْتِی وَاِرْحَمْنِی وَتَجاوَزْ عَنْ

سَیِّئاتِی وَمَا عِنْدِی یَا ذَا الْجَلالِ وَالْاِکْرامِ ۔

दूसरा अमल इस दुआ का पढ़ना है की बी'क़ौल शेख इसका पढ़ना मुस्तहब है: 

ऐ अल्लाह! ऐ ज़मीन-ए-काबा के बिछाने वाले, दाने को शिगाफ़्ता करने वाले, सख्ती दूर करने वाले, और हर तंगी से निकालने वाले 

मैं तुझ से सवाल करता हूँ इस दिन में जो तेरे इन दिनों में से है तूने जिनका हक़ अज़ीम क़रार दिया इनके शरफ़ को बढाया और इन्हें 

मोमिनों के पास अपनी अमानत बनाया और अपनी जानिब ज़रिया करार दिया, और ब'वास्ता तेरी वसी'अ रहमत के सवाली हूँ की अपने बंदा मोहम्मद पर रहमत नाजिल फ़र्मा जो बर'गुज़ीदा 

हैं और मीसाक़ में तेरे नज़दीक'तर हैं, कयामत में हर गिरफ़्तार को छुड़ाने वाले और राहे हक की तरफ बुलाने वाले हैं, नीज़ इनके पाकीज़ा अहलेबैत 

पर रहमत फरमा जो चिराग़ हिदायत, खुदा के बनाए हुए सतून, और जन्नत व जहन्नुम के हाकिम हैं और यह की आज हमारी ईद के रोज़ हमें अपनी अताओं के खज़ाने 

से वोह अता कर जो कभी ख़तम न हो और न इको रोका जाए इसके साथ हमें तौबा और अच्छी बाज़'गुज़श्त भी दे ऐ बेहतरीन पुकारे गए और शरीफ़'तर उम्मीद किये गए 

ऐ पूरा करने वाले, ऐ वफ़ा करने वाले, ऐ वोह जिसका करम निहाँ है अपनी करीमी से मुझ पर करम फरमा और अपनी परदापोशी से मुझे नेक बख्ती दे अपनी 

नुसरत से मुझे क़वी कर और ब'वास्ता अपने वालियान अमर और अपने राज़दारों के मुझे पाना ज़िक्र पाक न भुला, हशर व नशर के दिन तक मुझे ज़माने की सख्तियों से 

अपनी हिफ़ाज़त में रख, मुझे अपनी औलिया की ज्यारत का स्गरफ बख्श, इस वक़्त जब मेरी जान निकले जब मुझे कब्र में उतारा जाए, जब 

मेरा अमल बंद हो जाए और मेरी उम्र तमाम हो जाए! औ माबूद! मुझे याद रखना जब मुझ पर आज़माइश के लंबा होने पर की जब मैं ज़मीन की 

तहों में पड़ा हूँगा और लोगों में से भूलने वाले मुझे भूल चुके होंगे तब मुझे रहने की जगह दे और बा'इज्ज़त ठिकाना अता फ़रमा, मुझे अपनी औलिया के 

रफीक़ों में रख, अपने मुन्तखिब अफराद में करार दे और अपने पसंदीदा लोगों में दाखिल कर अपनी मुलाक़ात मेरे लिए मुबारक कर, मौत से पाहे अच्छे अच्छे अमाल 

बजा लाने की तौफीक दे, ना'अ-ज़ीशों से बचाए रख और बुरे कामों से दूर कर! ऐ माबूद! मुझे अपने नबी हज़रत मोहम्मद (स:अ:व:व) के हौज़े कौसर पर वारिद फ़रमा और इस 

में से खुश मज़ा-गवार पानी से सैराब फरमा की इसके बाद म मुझ एप्यास लगे और न इस से रोका जाऊं, न इस से हटाया जाऊँ, और इसे मेरा बेहतर तोशा करार    

दे, इस दिन के लिए जब वादे का दिन आ पहुँचेगा, ऐ माबूद! अगले और पिछले सितम गार लोगों पर लानत कर और इन पर 

जिन्होंने तेरे औलिया के हकुक़ ग़सब किये! ऐ माबूद! इनके सहारे तोड़ दे और इनके 

पैरोकारों और कारिंदों को हलाक कर दे और इनकी तबाही में और इनकी हुकूमतें छिनने में जल्दी कर और इनके लिए रास्ते तंग कर दे और इनके 

हम्कारों और हिस्सेदारों पर लानत कर, ऐ माबूद! अपने औलिया को जल्द कुशादगी दे इनके छीने हुए हुकूक वापिस दिला, क़ाएम आले-मोहम्मद (अ::स) का जल्द ज़हूर फ़रमा और इन्हें अपने 

दीन का मददगार और अपने इज़्न से अपने दुश्मनों पर मुसल्लत फ़रमा! ऐ माबूद! इनके गिर्द में मददगार फरिश्तों को खड़ा कर दे और शबे कद्र में जो हुकुम तूने इन 

को दिया इसके मुताबिक इन्हें अपनी तरफ से बदला लेने वाला करार दे यहाँ तक की तू राज़ी हो, तेरा दीन इनके ज़रिये पलट आये और इनके हाथों नई क़ुव्वत व 

ग़लबा पा कर हक निखर कर सामने आये और बातिल पूरी तरह मिट जाए! ऐ माबूद! ईमाम अल'असर (अ:त:फ) पर रहमत फ़रमा और इनके तमाम बुज़ुरगों पर और हें इनके मददगारों 

और साथियों में करार दे, हमें इनकी आमद-ए-सानी पर मब'उस फरमा, यहाँ तक की हम इनके अहद में इनके हामियों में हों, ऐ माबूद! हमें इनके क़्याम तक पहुंचा और 

इनकी हुकूमत के दिन दिखा और इन पर रहमत फरमा और इनकी दुआ हम तक पहुंचा और इन पर सलाम और अल्लाह की रहमतें और बरकतें हों 

 

 

اَللّٰھُمَّ داحِیَ الکَعْبَةِ، وَفالِقَ الْحَبَّةِ، وَصارِفَ اللَّزْبَةِ، وَکاشِفَ کُلِّ کُرْبَةٍ أَسْأَلُکَ فِی ھذَا

الْیَوْمِ مِنْ أَیَّامِکَ الَّتِی أَعْظَمْتَ حَقَّھا، وَأَقْدَمْتَ سَبْقَھا، وَجَعَلْتَھا عِنْدَ الْمُؤْمِنِینَ وَدِیعَةً، وَ

إِلَیْکَ ذَرِیعَةً، وَبِرَحْمَتِکَ الْوَسِیعَةِ، أَنْ تُصَلِّیَ عَلَی مُحَمَّدٍ عَبْدِکَ الْمُنْتَجَبِ فِی الْمِیثاقِ

الْقَرِیبِ یَوْمَ التَّلاقِ فاتِقِ کُلِّ رَتْقٍ،وَداعٍ إِلی کُلِّ حَقٍّ وَعَلَی أَھْلِ بَیْتِہِ الْاَطْہارِ،الْھُداةِ الْمَنارِ،

دَعایِمِ الْجَبَّارِ، وَوُلاةِ الْجَنَّةِ وَالنَّارِ،وَأَعْطِنا فِی یَوْمِنا ھذَا مِنْ عَطائِکَ الْمَخْزُونِ غَیْرَ مَقْطُوعٍ

وَلاَ مَمْنُوعٍ، تَجْمَعُ لَنا بِہِ التَّوْبَةَ وَحُسْنَ الْاَوْبَةِ، یَا خَیْرَ مَدْعُوٍّ، وَأَکْرَمَ مَرْجُوٍّ، یَا کَفِیُّ یَا وَفِیُّ،

یَا مَنْ لُطْفُہُ خَفِیٌّ، اُلْطُفْ لِی بِلُطْفِکَ، وَأَسْعِدْنِی بِعَفْوِکَ، وَأَیِّدْنِی بِنَصْرِکَ، وَلاَ تُنْسِنِی

کَرِیمَ ذِکْرِکَ،بِوُلاةِ أَمْرِکَ،وَحَفَظَةِ سِرِّکَ،وَاحْفَظْنِی مِنْ شَوایِبِ الدَّھْرِ إِلی یَوْمِ الْحَشْرِ

وَالنَّشْرِ،وَأَشْھِدْنِی أَوْ لِیائَکَ عِنْدَ خُرُوجِ نَفْسِی،وَحُلُولِ رَمْسِی،وَانْقِطاعِ عَمَلِی،وَانْقِضاءِ

أَجَلِی۔اَللّٰھُمَّ وَاذْکُرْنِی عَلَی طُولِ الْبِلی إِذا حَلَلْتُ بَیْنَ أَطْباقِ الثَّریٰ، وَنَسِیَنِی النَّاسُونَ مِنَ

الْوَری،وَأَحْلِلْنِی دارَ الْمُقامَةِ، وَبَوِّئْنِی مَنْزِلَ الْکَرامَةِ وَاجْعَلْنِی مِنْ مُرافِقِی أَوْ لِیائِکَ وَأَھْلِ

اجْتِبائِکَ وَاصْطِفائِکَ وَبارِکْ لِی فِی لِقائِکَ، وَارْزُقْنِی حُسْنَ الْعَمَلِ قَبْلَ حُلُولِ الْاَجَلِ

بَرِیْئاً مِنَ الزَّلَلِ وَسُوءِ الْخَطَلِ۔اَللّٰھُمَّ وَأَوْرِدْنِی حَوْضَ نَبِیِّکَ مُحَمَّدٍ صَلَّی اللهُ عَلَیْہِ وَآلِہِ

وَاسْقِنِی مِنْہُ مَشْرَباً رَوِیّاً سائِغاً ھَنِیئاً لاَ أَظْمَأُ بَعْدَہُ، وَلاَ أُحَلَّأُ وِرْدَہُ، وَلاَ عَنْہُ أُذادُ، وَاجْعَلْہُ

لِی خَیْرَزادٍ،وَأَوْفی مِیعادٍ یَوْمَ یَقُومُ الْاَشْھادُ۔اَللّٰھُمَّ وَالْعَنْ جَبابِرَةَ الْاَوَّلِینَ وَالْاَخِرِینَ وَبِحُقُوقِ

أَوْلِیائِکَ الْمُسْتَأْثِرِینَ۔اَللّٰھُمَّ وَاقْصِمْ دَعائِمَھُمْ،وَأَھْلِکْ أَشْیاعَھُمْ وَعامِلَھُمْ،وَعَجِّلْ مَھالِکَھُمْ،

وَاسْلُبْھُمْ مَمالِکَھُمْ،وَضَیِّقْ عَلَیْھِمْ مَسالِکَھُمْ،وَالْعَنْ مُساھِمَھُمْ وَمُشارِکَھُمْ۔اَللّٰھُمَّ وَعَجِّلْ

فَرَجَ أَوْلِیائِکَ،وَارْدُدْ عَلَیْھِمْ مَظالِمَھُمْ، وَأَظْھِرْ بِالْحَقِّ قائِمَھُمْ، وَاجْعَلْہُ لِدِینِکَ مُنْتَصِراً،

وَبِأَمْرِکَ فِی أَعْدائِکَ مُؤْتَمِراً ۔ اَللّٰھُمَّ احْفُفْہُ بِمَلائِکَةِ النَّصْرِ، وَبِما أَلْقَیْتَ إِلَیْہِ مِنَ الْاَمْرِ

فِی لَیْلَةِ الْقَدْرِ مُنْتَقِماً لَکَ حَتّی تَرْضی وَیَعُودَ دِینُکَ بِہِ وَعَلَی یَدَیْہِ جَدِیداً غَضّاً، وَیَمْحَضَ

الْحَقَّ مَحْضاً، وَیَرْفُضَ الْباطِلَ رَفْضاً۔اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلَیْہِ وَعَلَی جَمِیعِ آبائِہِ وَاجْعَلْنا مِنْ صَحْبِہِ

وَأُسْرَتِہِ، وَابْعَثْنا فِی کَرَّتِہِ، حَتّی نَکُونَ فِی زَمانِہِ مِنْ أَعْوانِہِ اَللّٰھُمَّ أَدْرِکْ بِنا قِیامَہُ، وَأَشْھِدْنا 

أَیَّامَہُ وَصَلِّ عَلَیْہِ، وَارْدُدْ إِلَیْنا سَلامَہُ، وَاَلسَّلاَمُ عَلَیْہِ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَکاتُہُ ۔

मालूम हो की मीर दामाद ने अपने रिसाला अर्बा-ए-अय्याम में दहवुल अर्ज़ के दिन के अमाल में फरमाया है की आज के दिन ईमाम अली रज़ा (अ:स) की ज्यारत करना मुस्तहब और मस्नून आदाब के साथ मोएकद है इसी तरह पहली रजब को ईमाम अली रज़ा (अ:स) की ज्यारत की भी ज़्यादा ताकीद है!  

 

मुहर्रम 

सफ़र 

रबी'उल अव्वल  रजब 

शाबान 

रमज़ान  ज़िल्काद  ज़िल्हज्ज 
क़ुरान करीम  क़ुरानी दुआएँ  दुआएँ  ज्यारतें 
अहलेबैत (अ:स) कौन हैं? सहीफ़ा-ए-मासूमीन (अ:स) नमाज़ मासूमीन (अ:स) और दूसरी अहम् नमाज़ें  हज़रत ईमाम मेहदी (अ:त:फ़)
ईस्लामी क़ानून और फ़िक्ह  लाईब्रेरी  उल्मा-ए-दीन  इस्लामी महीने और ख़ास तारीख़ें

कृपया अपना सुझाव  भेजें

ये साईट कॉपी राईट नहीं है !