अगर किसी शख्स
की नमाज़े शब् किसी वजह से छूट जाती है तो वोह यह नमाज़ दिन के किसी भी वक़्त में
बजा ला सकता है! नमाज़े
शब् की काजा की भी बड़ी फ़ज़ीलत है! तफ़सीर अली इब्न ईब्राहीम क़ुम्मी में हजरत
ईमाम जाफ़र सादिक (अ:स) से
रिवायत है की किसी शख्स ने ईमाम (अ:स) से कहा : या ईमाम (अ:स) मेरी जान आप पर
कुर्बान हो,
कभी कभी मेरी नमाज़े शब् एक या दो दिन या महीने तक छूट जाती है और मैं इसे दिन
में बजा लाता हूँ,
क्या यह सही है?
ईमाम (अ:स) ने फ़रमाया,
"
वल्लाह,
तुम्हारी आँख की रौशनी की वजह यही है" और इन्होने इस जुमले को तीन बार दुहराया!
इस्हाक़ बिन अम्मार ने ईमाम
अल'सादीक़ (अ:स) से
जिन्होंने अपने वालिद (अ:स) से
और उन्होंने हज़रत
रसूल अकरम (स:अ:व:व) से
रिवायत की है की जब कोई शख्स नमाज़े शब् की क़ज़ा बजा लाता है तो
अल्लाह (स:व:त)
फ़रिश्तों के सामने फ़खर ज़ाहिर करता है और कहता है,
"ऐ
फ़रिश्तों! देखो यह शख्स क़ज़ा बजा ला रहा है,
जिसको मैंने इसपर फ़र्ज़ नहीं किया है,
गवाह रहना की मैंने इसको निजात दी (हवाला :
बेहार अल'अनवार,
वॉल्यूम
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अगर कोई शख्स नमाज़े शब् पढ़ रहा हो और सुबह नमूदार हो जाती है जैसे की
4
रक्'अत
पढने के बाद सुबह होती है तो इसे चाहिए की बाक़ी की नमाज़ भी बगैर किसी और रसूमात
के पूरी कर ले जो बताई गई हैं! लेकिन अगर किसी ने
4
रक्'अत
नमाज़ पूरी नहीं की है तो इसे चाहिए की वोह नमाज़े शब् की
2
रक्'अत
नमाज़ पूरी कर ले,
फिर फ़जर की
2
रक्'अत
नमाज़े नाफेलाह पढ़े,
फिर फजर की
2
रक्'अत
नमाज़े वाजिब बजा लाये और इसके बाद नमाज़े शब् को काजा की नियत से पूरा करे! अगर
किसी शख्स ने नमाज़े शब् शुरू ही नहीं की है और सुबह हो जाती है तो इसे चाहिए की
वोह
2
रक्'अत
नाफ़ेलह की पढ़ कर फ़जर की वाजिब नमाज़ बजा लाये और फ़जर की नाम्माज़े शब् की क़ज़ा बजा
लाये!
अगर कोई नमाज़े शब् सुबह की अज़ान के बाद और आफताब के तुलु होने से पहले अदा करता
है तो इसे चाहिए की एहतियात की बिना पर न तो क़ज़ा की नियत करे और न ही सही वक़्त
पर अदाएगी की नियत करे,
बल्कि यह नियत करे की "जो भी क़ुबूल अमल अमाल हो"
इसके मानी यह हुए की शब् की नमाज़
अल्लाह (स:व:त)
से कुर्बत हासिल करने का एक बेहतरीन ज़रिया है! कुर्बतन इल'अल्लाह |