शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत
रहम वाला है |
बिस्मिल्लाह अर'रहमान अर'रहीम |
بِسْمِ اللهِ الرَحْمنِ الرَحیمْ |
ऐ माबूद!
मोहम्मद व आले मोहम्मद पर रहमत नाजिल फ़रमा और हक में
इख्तालाफ़ के मकाम पर अपने हुक्म से मुझे हिदायत दे! बेशक
तू जिसे चाहे सीढ़ी राह की हिदायत फरमाता है!
|
अल्लाहुम्मा सल्ले अल्ला मोहम्मदीन व आले मोहम्मद व अह्देनी
लेमा अख़'तलेफ़ा फ़ीहे मिनल हक़'क़ा बे;इज़्नेका, इन'नका तह्दी
मिन तशा'ओ इला सिरातिम मुस्तक़ीम
|
اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلی مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ،
وَاھْدِنِی لِمَا اخْتُلِفَ فِیہِ مِنَ الْحَقِّ بِإذْنِکَ،
إِنَّکَ تَھْدِی مَنْ تَشَاءُ إِلی صِرَاطٍ مُسْتَقِیمٍ
|
इसके बाद दस मर्तबा
कहें |
ऐ माबूद! मोहम्मद और आले मोहम्मद पर रहमत फरमा,
औसिया
की
जो खुदा से राज़ी और ख़ुदा
इनसे राज़ी है,
इनके लिए अपनी बेहतरीन रहमतें और अपनी बेहतरीन बरकतें करार दे,
इनपर
और इनकी अर्वाह और अज्साम पर सलाम हो और अल्लाह की रहमत व बरकत नाजिल हो |
अल्लाहुम्मा
सल्ले अला मोहम्मदीन व आले मोहम्मद अल-औसिया अर'राज़ीना
अल'मर्ज़ी-यीन
बे
अफ्ज़ले सल्वातेका,
व बारीक अलैहिम बे'अफ्ज़ले
बरकातेका,
वस'सलामो
अलैहिम व अला
अर्वाहेहीम व अज्सादेहीम व रहमतुल्लाहे व बराकातोह |
اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلی مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ
الْاَوْصِیاءِ الرَّاضِینَ الْمَرْضِیِّینَ بِأَفْضَلِ
صَلَواتِکَ، وَبارِکْ عَلَیْھِمْ بِأَفْضَلِ بَرَکَاتِکَ،
وَاَلسَّلاَمُ عَلَیْھِمْ وَعَلی أَرْواحِھِمْ
وَأَجْسَادِھِمْ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَکَاتُہُ
|
इस दरूद व सलाम की जुमा के दिन पढने की बड़ी फजीलत ब्यान हुई है,
इसके बाद कहें |
ऐ माबूद ! मुझे इस राह पर ज़िंदा रख जी पर तूने अली (अ:स) इब्ने अबी तालिब (अ:स)
को ज़िंदा रखा और मुझे राह पर मौत दे जिस पर तूने अमीरुल मोमिनीन अली (अ:स)
इब्ने अबी तालिब (अ:स) को शहादत अता फरमाई! |
अल्लाहुम्मा अ'हैनी अला मा अहैय्ता अलैहि अली इब्ने अबी
तालिब, व अ'अमितनी अला मा माता अलैहि अली इब्ने अबी तालिब
अलाही अल्सलाम
|
اَللّٰھُمَّ أَحْیِنِی عَلی مَا أَحْیَیْتَ عَلَیْہِ عَلِیَّ بْنَ أَبِی
طَالِبٍ، وَأَمِتْنِی عَلَی مَا ماتَ عَلَیْہِ عَلِیُّ بْنُ أَبِی طالِبٍ
عَلَیْہِ اَلسَّلاَمُ
|
फिर
सौ
मर्तबा
कहें
|
मैं अल्लाह से बख्शीश चाहता हूँ और इसके हुज़ूर तौबा करता
हूँ |
असतग'फ़िरुल्लाहे
व
आ-अतुबो
इलैहे |
أَسْتَغْفِرُ اللهَ وَأَتُوبُ إِلَیْہِ۔ |
फिर
सौ
मर्तबा
कहें |
सेहत व आफियत माँगता हूँ |
अस'अलूल लाहल आफ़ियह |
أَسْأَلُ اللهَ الْعَافِیَةَ |
फिर सौ मर्तबा कहें |
मैं आतिशे जहां से खुदा की पनाह माँगता हूँ |
अस्ताजीरो बिल्लाहे मिनन नार |
أَسْتَجِیرُ بِاللهِ مِنَ النَّارِ |
फिर सौ मर्तबा कहें |
इससे जन्नत का तालिब हूँ |
व अस'आ लहुल जन्नाह |
وَأَسْأَلُہُ الْجَنَّةَ |
फिर सौ मर्तबा कहें |
मैं अल्लाह से हूर'ऐन का तालिब हूँ |
अस'आ लहुल हुर्रल ऐन
|
أَسْأَلُ اللهَ الْحُورَ الْعِینَ |
फिर सौ मर्तबा कहें |
अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं जो बादशाह और रौशन हक है! |
ला इलाहा इलल लाहुल मालिकुल हक़'क़ुल मुबीन |
لاَ إِلہَ إِلاَّ اللهُ الْمَلِکُ الْحَقُّ الْمُبِینُ |
सौ मर्तबा सुरह अखलास पढ़ें और फिर सौ मर्तबा कहें |
मोहम्मद व आले मोहम्मद पर खुदा की रहमत हो |
साल'लल'लाहो अलैहि व आलेही मोहम्मद |
صَلَّی اللهُ عَلی مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ |
फिर सौ मर्तबा कहें |
अल्लाह
पाक
है
और
अल्लाह
की
सिवा
कोई
माबूद
नहीं
और
अल्लाह
बरतर
है,
नहीं
कोई
ताक़त
व
क़ुव्वत
मगर
वोह
को
अल्लाह
बुज़ूर्ग
व
बरतर
से
मिलती
है |
सुब'हान
अल्लाहे
वल
हम्दो
लिल्लाहे
व
ला
इलाहा
इलल
लाहो
वल
लाहो
अकबर
व
ला
हौला
व'ला
क़ुव्वाता
इल्ला
बिल्लाहिल
अलियुल
अज़ीम |
سُبْحَانَ اللهِ وَالْحَمْدُللهِ وَلاَ إِلہَ إِلاَّ اللهُ وَاللهُ أَکْبَرُ
وَلاَ حَوْلَ وَلاَ قُوَّةَ إِلاَّ بِاللهِ الْعَلِیِّ الْعَظِیمِ |
फिर सौ मर्तबा कहें |
जो खुदा चाहे वोही होता है और अल्लाह बुज़ूर्ग व बरतर से बढ़ कर कोई ताक़त व
कुव्वत नहीं |
माशा अल्लाहो काना
व लाहौल व ला कुव्वाता इला बिल्लाहिल अलियुल अज़ीम |
مَا شَاءَ اللهُ کَانَ وَلاَ حَوْلَ وَلاَ قُوَّةَ إِلاَّ بِاللهِ الْعَلِیِّ
الْعَظِیمِ |
फिर कहें |
ऐ माबूद! मैंने तेरी अज़ीम निगहबानी में सुबह की है जिस तक
किसी का हाथ नहीं पहुंचता, न कोई शब् में इस पर योरिश कर
पाटा है इस मखलूक में से जो तूने ख़ल्क़ फरमाई है और न वो
मखलूक जिसे तूने ज़बान दी और जिसे ज़बान नहीं दी हर खौफ में
तेरी पनाह में तेरे नबी के अहलेबैत (अ:स) की विला से साख्ता
लिबास में मलबूस हर चीज़ से महफूज़ जो मेरे इखलास की मज़बूत
दीवार में रुखना डालना चाहे, यह मानते हुए की वोह हक हैं
इनकी रस्सी से वाबस्तगी है इस यकीन से की हक इनके लिए इनके
साथ और इनमें है जो इनको चाहे, मैं इसे चाहता हूँ जो इसे
दूर हों मैं इस्से दूर हूँ, बस ऐ खुदा इनके तुफैल मुझे हर इस
शर से पनाह दे जिसका मुझे खौफ है, ऐ बुलंद ज़ात, ज़मीन-ओ-आसमान
की पैदाइश के वास्ते से दुश्मनों को मुझ से दूर कर दे,
बेशक हमने एक दीवार इनके सामने और एक दीवार इनके पीछे बना
दी, बस इनको ढांप दिया की वोह देखते नहीं है!
|
अस्बह्तो अल्लाहुम्मा मु'तसीमन
बे'ज़मा'मिका
अल'मनी'ई
अल'लज़ी
ला युतावलो व ला युहा'वलो
मिन शर्रे
कुल्ले ग़ा'शिमिन
व तारी'क़िन
मं सा'ईरे
मन खलक़'ता
मिन खल्किका अस'सामिते
वल नाती'क़े
फ़ी जन्नातिन मिन कुल्ला मखूफिन बी'लिबासीन साबी'गतीन व ला'आ'ई
अहलेबय्ते नबिय्येका मुह्ताजिबन मिन कुल्ला क़ासेदिन ली इला'
अज़ी'यतिन
बे'जिदारिन
हसीनिन अल'इख्लासे
फ़िल इतराफे बे हक़्क़े'हिम
वल'तमस-सुके
बे'हब्लेहिम
मो'क़ेनन
अन्ना अल'हक़्क़'क़ा लहुम
व मा'अहुम
व फ़ी'हिम
व बेहिम उवालि मन व लौ वा उजानेबो फ़ा'अ'इदनी
अल्लाहुम्मा बेहीम मं शर्रे कुल्ली मा अत्ता'क़िहि
या अज़ीमो हां जज़'तू
अल'आदिया
अन्नी बे/बादी'इ
अस'समा'वाति
वाल अर्ज़ इन्ना जा'अल्ना
मं बयनी ऐदीहीम सददन व मं ख़ल'फ़िहीम
सददन फ़ा'अग़-श्यानाहुम
फ़हुम ला युब'सिरुना |
أَصْبَحْتُ اَللّٰھُمَّ مُعْتَصِماً بِذِمَامِکَ الْمَنِیعِ
الَّذِی لاَ یُطاوَلُ وَلاَ یُحاوَلُ مِنْ شَرِّ کُلِّ
غاشِمٍ وَطَارِقٍ مِنْ سَائِرِ مَنْ خَلَقْتَ وَمَا
خَلَقْتَ مِنْ خَلْقِکَ الصَّامِتِ وَالنَّاطِقِ فِی
جُنَّةٍ مِنْ کُلِّ مَخُوفٍ بِلِبَاسٍ سَابِغَةٍ وَلاَءِ
أَھْلِ بَیْتِ نَبِیِّکَ مُحْتَجِباً مِنْ کُلِّ قاصِدٍ
لِی إِلی أَذِیَّةٍ، بِجِدَارٍ حَصِینِ الِاِخْلاَصِ في
الاعْتِرافِ بِحَقِّھِمْ وَالتَّمَسُّکِ بِحَبْلِھِمْ،
مُوقِناً أَنَّ الْحَقَّ لَھُمْ وَمَعَھُمْ وَفِیھِمْ
وَبِھِمْ، أُوالِی مَنْ وَالَوْا، وَأُجانِبُ مَنْ
جَانَبُوا، فَأَعِذْنِی اَللّٰھُمَّ بِھِمْ مِنْ شَرِّ کُلِّ
مَا أَتَّقِیہِ یَا عَظِیمُ۔ حَجَزْتُ الْاَعادِیَ عَنِّی
بِبَدِیعِ السَّمٰوَاتِ وَالْاَرْضِ، إِنَّا جَعَلْنا مِنْ
بَیْنِ أَیْدِیھِمْ سَدّاً وَمِنْ خَلْفِھِمْ سَدّاً
فَأَغْشَیْناھُمْ فَھُمْ لاَ یُبْصِرُوُنَ
|
यह
अमीरुल मोमिनीन
(अ:स) की दुआए लैलातुल मुबीत है और हर सुबह व शाम पढ़ी
जाती है और तहजीब में रिवायत है की जो शख्स
नमाज़े सुबह के बाद निचे लिखी हुई दुआ
10
मर्तबा पढ़े तो हक़ त'आला
इसको अंधेपन,
दीवानगी,
कोढ़,
तहि'दस्ती,
छत तले दबने,
और बुढापे में हवास खो बैठने से महफूज़ फरमाता है! |
पाक है ख़ुदाए बरतर और तारीफ़ सब इसी की है और नहीं कोई हरकत व क़ुव्वत मगर
वोह जो खुदाये बुलंद व बरतर से मिलती है |
सुबहान अल्लाहिल अज़ीम व बे'हम्देही
व ला हौला व ला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलियुल अज़ीम |
سُبْحَانَ اللهِ الْعَظِیمِ وَبِحَمْدِھِ وَلاَ حَوْلَ
وَلاَ قُوَّةَ إِلاَّ باللهِ الْعَلِیِّ الْعَظِیمِ
|
नीज़ शेख कुल्लैनी (र:अ) ने
हज़रत ईमाम जाफर
अल-सादीक़ (अ:स) से रिवायत की है की जो
नमाज़े सुबह
और नमाज़े मगरिब के बाद
7
मर्तबा नीचे लिखी हुई दुआ पढेगा तो अल्लाह इस से
70
क़िस्म के बलाएँ दूर कर देता है इनमें सबसे मामूली ज़हर से हिफाज़त,
और दीवानगी से बचाओ है,
और अगर वो शक़ि है तो इसे इस ज़मुर्रे से निकाल कर सईद-ओ-नेक बख्त लोगों में
दाखिल कर दिया जाएगा! |
अल्लाह के नाम (से शुरू करता
हूँ) जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है,
नहीं कोई हरकत व क़ुव्वत मगर खुदाए बुज़ुर्ग व बरतर से मिलती है |
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम,
ला हौला व ला क़ुव्वता इल्ला
बिल्लाहिल अलियुल अज़ीम
|
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِیمِ، لاَ حَوْلَ وَلاَ
قُوَّةَ إِلاَّ بِاللهِ الْعَلِیِّ الْعَظِیمِ
|
नीज़,
आँ'हज़रत
से रिवायत है की दुन्या व आखेरत की कामयाबी और दर्द चश्म के खात्मे के लिए
सुबह और मगरिब की नमाज़ के बाद यह दुआ पढ़ें : |
खुदा वंदा ! मोहम्म व आले मोहम्मद का जो तुझ पर हक
है मैं इसके वास्ते से सवाल करता हूँ की मोहम्मद व आल एमोहम्मद पर अपनी
रहमत नाजिल फरमा की मेरी आँखों में नूर,
मेरे दीं में बसीरत,
मेरे दिल में यकीन,
मेरे अमल में इखलास,
मेरे नफ़्स में सलामती,
और मेरे रिजक में कुशादगी अता फ़र्मा,
और जब तक ज़िंदा रहूँ मुझे अपने शुक्र की तौफ़ीक देता रह ! |
अल्लाहुम्मा इन्नी अस'अलोका
बे'हक़्क़े
मोहम्मदीन व आले मोहम्मदीन अलैका सल्ले अला मोहम्मदीन व आले मोहम्मदीन व अज'अल
अलन'नूरा
फी बासरी वाल बसीरते फी दीनी वल यक़ीन फी क़ल्बी वाल इख्लास फी अमाली वास'सलाम्ह
फी नफ्सी वस'
सा-अत फी रीजकी वल्श-शुक्रा लका अ'अब्दन
मा अबकै'तनी |
اَللَّھُمَّ إِنِّی أَسْأَلُکَ بِحَقِّ مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ عَلَیْکَ صَلِّ
عَلَی مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ واجْعَلِ النُّورَ فِی بَصَرِی وَالْبَصِیرَةَ
فِی دِینِی وَالْیَقِینَ فِی قَلْبِی وَالْاِخْلاصَ فِی عَمَلِی وَالسَّلامَةَ
فِی نَفْسِی وَالسَّعَةَ فِی رِزْقِی وَالشُّکْرَ لَکَ أَبَداً مَا
أَبْقَیْتَنِی
|
शेख इब्ने फ़हद ने उददत-अल'दुआई
में
इमाम रज़ा (अ:स)
से नक़ल किया है की जो शख्स नमाज़े सुबह के बाद यह दुआ पढ़े तो वोह जो
भी हाजत तलब करेगा,
खुदा पूरी फरमाएगा और इसकी हर मुश्किल आसान कर देगा! |
अल्लाह के नाम से शुरू करता हूँ,
खुदा रहमत फरमाए मोहम्मद और आले मोहम्मद पर और मैं अपना मामला खुदा के
सुपुर्द करता हूँ,
बेशक खुदा बन्दों को देखता है,
बस खुदा इस शख्स को इन बुराइयों से बचाए जो लोगों ने पैदा की,
और तेरे सिवा कोई माबूद नहीं,
पाक है तेरी ज़ात,
बेशक मैं जालिमों में से था तो हम (खुदा) ने इसकी दुआ कबूल की और इसे गम से
निजात दी और हम मोमिनों को इसी तरह निजात देते हैं,
हमारे लिए खुदा काफी है,
और बेहतरीन सरपरस्त है,
पास (मुजाहिद) खुदा के फ़ज़ल-ओ-करम से इस तरह आये की इन्हें तकलीफ न पहुंची
थी,
जो अल्लाह चाहे वोही होगा,
नहीं कोई ताक़त व क़ुव्वत मगर वोह जो अल्लाह से मिलती है जो अल्लाह चाहे वोह
होगा न वोह जो लोग चाहें और जो अल्लाह चाहे वोह होगा अगर्चेह लोगों पर गिराँ
हो,
मेरे लिए पलने वाले की बजाये पालने वाला काफी है,
मेरे लिए ख़ल्क़ होने
वालों की बजाये ख़ल्क़ करने वाला काफी है मेरे लिए रिजक़ पाने वालों की बजाये रिजक़
देने वाला काफी है,
जहानों का पालने वाला अल्लाह ! मेरे लिए काफी है,
वोह जो मेरे लिए काफी है वोही मेरे लिए काफ़ी है,
जो हमेशा से काफी है मेरे लिए काफी है,
वोह जो काफी है मैं जब से हूँ,
और काफी रहेगा,
मेरे लिए काफी है वो अल्लाह,
जिसके सिवा कोई माबूद नहीं,
मैं इसी पर तवक्कुल करता हूँ और वोही अरशे अज़ीम का मालिक है! |
बिस्मिल्लाहे व सल'लल-लाहो
अला मोहम्मदीन व आलेही व उफ़्व-वजो अमरेयालिल-लाहे अ-इन्नल लाहा बसीरून
बिल-इबादे फ़वक़'क़हु
अल्लाहो सैय्याती
मा मकरू-आ ला इलाहा अन्ता सुब्हानका इन्नी कुन्तो मिनज़ जालेमीना फ'अस्ता
जब्ना लहू व नज्जैय्नहु मिनल गम्मे व कजालिका नुन्जी अल्मोमिनीना हस्बोनल
लाह व नेअ-मल वकील फ-अन्कोलुबे
बे'नेमतींन
मिनल लाहे व फजलिन लम यमसस-हुम सुआ'उन
माशा'अल्लाहो
ला हौला विला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहे,
माशा'अल्लाहो
ला माशा अलनासो माशा'अल्लाहो
व इन करेहल'नासो,
हस्बियल'रब्बो
मीना अल'मर्बूबीना
हसबिया अल'खालेक़ो
मिनल मखलूकीना हसबियर राज़ेक़ो मिनल मर्ज़ू'क़ीना
हस्बियल-लाहो रबबुल आलामीना हस्बीया मन
हुवा हस्बीया हस्बीया
मन लम यज़ल हस्बीया हस्बीया
मन काना मुध कुन्तो लम यज़ल हस्बीया हस्बीया
अल्लाहो ला इलाहा इल्ला हुवा अलैहि तव्वकल्तो व हवा रब्बुल अर्शील अज़ीम |
بِسْمِ اللهِ وَ صَلَّی اللهُ عَلی مُحَمَّدٍوَآلِہِ وَأُفَوِّضُ أَمْرِيإلَی
اللهِ إنَّ اللهَ بَصِیرٌبِالْعِبادِ فَوَقَاھُ اللهُ سَیِّئاتِ مَا مَکَرُوا
لاَإِلہَ إِلاَّأَنْتَ سُبْحانَکَ إِنِّی کُنْتُ مِنَ الظَّالِمِینَ
فَاسْتَجَبْنَالَہُ وَنَجَّیْناہُ مِنَ الْغَمِّ وَ کَذَلِکَ نُنْجِی
الْمُؤْمِنِینَ حَسْبُنَااللهُ وَنِعْمَ الْوَکیلُ، فَانْقَلَبُوا بِنِعْمةٍ
مِنَ اللهِ وَفَضْلٍ لَمْ یَمْسَسْھُمْ سُوءٌ مَا شَا ءَ اللهُ لاَ حَوْلَ
وَلَا قُوَّةَ إِلاَّ بِاللهِ ، مَا شَاءَ اللهُ لاَ مَا شَاءَ النَّاسُ مَا
شَاءَ اللهُ وَإِنْ کَرِہَ النَّاسُ، حَسْبِیَ الرَّبُّ مِنَ الْمَرْبُوبِینَ
حَسْبِیَ الْخالِقُ مِنَ الْمَخْلُوقِینَ حَسْبِیَ الرَّازِقُ مِنَ
الْمَرْزُوقِینَ حَسْبِیَ اللهُ رَبُّ الْعالَمِینَ حَسْبِی مَنْ ھُوَ حَسْبِی
حَسْبِی مَنْ لَمْ یَزَلْ حَسْبِی حَسْبِی مَنْ کَانَ مُذْ کُنْتُ لَمْ یَزَلْ
حَسْبِی حَسْبِیَ اللهُ لاَ إِلہَ إِلاَّ ھُوَ عَلَیْہِ تَوَکَّلْتُ وَھُوَ رَبُّ
الْعَرْشِ الْعَظِیمِ
|
मो'अल्लिफ़
कहते है,
मेरे उस्ताद सकतः अल-इस्लाम नूरी (अ:र) खुदा इनकी कब्र को रौशन करे किताब
दारुल-इस्लाम में अपने उस्ताद आलम रब्बानी हाज मुल्ला फ़तह अली सुलतान आबादी
से नकल करते हैं की फ़ाज़िल मक़्द'दस
अख़'वंद
मुल्ला मोहम्मद सादिक इराकी बहुत परेशानी सख्ती और बदहाली में मुब्तला थे,
इन्हें इस तंगी से छुटकारे की कोई सूरत नज़र नहीं आ रही थी एक रात ख्वाब में
देखा की एक वादी
में बहुत बड़ा खैमा नसब है जब पूछा तो मालूम हुआ की यह फरयादियों की फरयाद
रस और परेशान हाल लोगों के सहारे
ईमाम ज़माना
(अ:त:फ) का
खैमा है! यह सुनकर जल्दी से हज़रत की खिदमत में हाज़िर हुए अपनी बदहाली का
क़िस्सा सुनाया और इनसे गम के खात्मे और कशाइश के लिए ख्वास्तगार हुए!
आँ-हज़रत ने इनको अपनी औलाद में से एक बुज़ुर्ग की तरफ भेजा और इनके खैमा की
तरफ इशारा किया, अख़'वंद
हज़रत (अ:स) के खैमा से निकल कर इस बुज़ुर्ग के खैमा में पहुंचे,
मगर क्या देखते हैं की वहाँ सैय्यद सनद हब्र मोअ'तमिद
आलम अमजद मो'ईद
बारगाहे आक़ाई सैय्यद मोहम्मद सुलतान आबादी मुसल्ला-ए-इबादत पर बैठे दुआ व
क़िर'अत
में मशगूल हैं। अख़'वंद
ने इन्हें सलाम किया और अपनी हालत ज़ार ब्यान की,
तो सैय्यद ने इनको रफ़ा-ए-मसाएब और वुस'अत
रिज़्क की एक दुआ तालीम फरमाई,
वोह ख्वाब से बेदार हुए तो नीचे लिखी हुई दुआ इन्हें याद हो चुकी थी! ईसी
वक़्त सैय्यद के घर का क़सद किया,
हालंकि ज़हनी तौर पर सैय्यद से बे'ता-अल्लुक़
थे और इनके यहाँ आना जाना नहीं रखते थे, अख़'वंद
जब सैय्यद के खिदमत में पहुंचे
तो इनको इस हालत में पाया जैसा की ख्वाब में देखा था,
वोह मुसल्ले पर बैठे इज़्कार व इस्तग्फ़ार में मशगूल थे! जब इन्हें सलाम किया
तो हलके से तबस्सुम के साथ सलाम का जवाब दिया,
गोया वोह सूरत-ए-हाल से वाक़िफ़ हैं! अख़'वंद
ने इनसे दुआ की दरख्वास्त की तो इन्होने वोही दुआ बताई जो ख्वाब में तालीम
कर चुके थे! अख़'वंद
ने वोह दुआ पढनी शुरू की और फिर कुछ ही दिनों में हर तरफ से दुन्या की
फरावानी होने लगी! सख्तो और बदहाली ख़तम हुई और खुश'हाली
हासिल हुई!हाज मुल्ला फ़तह अली सुलतान आबादी (अ:र) सैय्यद मौसूफ़ की तारीफ़
किया करते थे क्योंकि आपने इनसे मुलाक़ात की बल्कि कुछ अरसा इनकी शागिर्दी
में भी रहे! सैय्यद ने ख्वाब-ओ-बेदारी में हाज मुल्ला फतह अली को जो दुआ
तालीम की थी इसमें यह
3
अमाल शामिल हैं!
(1)
फजर के बाद सीने पर हाथ रख कर
70
मर्तबा "या फ़त्ताहो"
( یَافَتَّاحُ)
कहे
(2)
पाबंदी से काफी बार नीचे लिखी हुई दुआ पढता रहे,
जिसकी
रसूल अल्लाह (स:अ:व:व) ने अपने एक परेशान
हाल सहाबी को तालीम फरमाई थी और इस दुआ की बरकत से कुछ दिनों में इसकी
परेशानी दूर हो गयी
(3)
नमाज़े फज्र के बाद शेख इब्ने फहद से नकल शुदा दुआ पढ़ें इसको गनीमत समझें और
इसमें गफ़्लत न करें,
और वोह दुआ यह है : |
नहीं कोई ताक़त व क़ुव्वत मगर वोह जो खुदा से मिलती है,
मैंने इस ज़िंदा खुदा पर तवक्कुल किया है जिसके लिए मौत नहीं,
और हम्द इस अल्लाह के लिए है जिसकी कोई औलाद नहीं और न कोई इसकी सल्तनत में
इसका शरीक है न इसके अजज़ की वजह से कोई इसका मददगार है और तुम इसकी बड़ाई
ब्यान किया करो! |
ला हौला व ला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहे अलल हय्युल लज़ी ला यमूतो वाल हम्दो
लिल्लाहिल लज़ी लम यत्ता'खेज़ो
वलादन,
व लम यकून लहू शरीक,
फ़ील मुल्के,
व लम यकून लहू वालीयुं मिनल ज़ूल्ला व कब्बा'रहू
तक्बीरा
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لاَ حَوْلَ وَلاَ قُوَّةَ إِلاَّ بِاللهِ تَوَکَّلْتُ عَلَی الْحَیِّ الَّذِی
لاَ یَمُوتُ وَالْحَمْدُ لِلّٰہِ الَّذِی لَمْ یَتَّخِذْ وَلَداً، ولَمْ یَکُنْ
لَہُ شَرِیکٌ فِی الْمُلْکِ، وَلَمْ یَکُنْ لَہُ وَلِیٌّ مِنَ الذُّلِّ
وَکَبِّرْہُ تَکْبِیراً
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जानना चाहिए की नमाज़ों के बाद सजदा-ए-शुक्र मुस्तहब है और
इसके लिए बहुत सारी दुआएं व अज़्कार ब्यान हुए हैं!
ईमाम अली रज़ा (अ:स)
फरमाते हैं की सजदा-ए-शुक्र में चाहे तो 100 मर्तबा
शुकरन शुकरन
या 100 मर्तबा
अफ़ु'वन अफ़ु'वन
कहें, हज़रत से यह भी मन्कूल है की सजदा-ए-शुक्र में कम से
कम 3 मर्तबा
शुकरन अल्लाह
कहें! नीज़
रसूल
अल्लाह और आइम्मा ताहेरीन (अ:स)
से तुलू' व गरूब आफताब के वक़्त बहुत सी दुआएं और इफ्कार
नकल हुए हैं नीज़ मातेबर रिवायत में इन दोनों वक़्तो में दुआ
करने की बहुत ज़्यादा तारगीब दी गयी है! इस मुख़्तसर जगह पर
हम महज़ कुछ मुस्तनद दुआओं का ही ज़िक्र करेंगे!
पहला :
मशा'ईख हदीस ने मातेबर सनद के साथ
ईमाम जाफर सादिक़ (अ:स)
से रिवायत की है की वो सूरज निकलने से पहले और सूरज डूबने
से पहले 10 मर्तबा यह दुआ पढ़े : कुछ रिवायतों में है की
अगर किसी वजह से यह दुआ न पढ़ सके तो इस दुआ की क़ज़ा पढ़े!
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खुदा के सिवा कोई माबूद नहीं,
वोह यकता है इसका कोई शरीक नहीं,
मुल्क इसी का है और इसी के लिए हम्द है,
वोह ज़िंदा करता है है और मौत देता है और मौत देता है और ज़िंदा करता है,
वोह ज़िंदा है इसे मौत नहीं आती,
भलाई इसी के हाथ में है और वोह हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है |
ला इलाहा इलल'लाहो
वह'दहु
ला शरीका लहू,
लहुल मुल्क व लाहुल हम्द,
युहयी व युमीतो व योमीतो व युहयी,
व हवा हय्यो ला यमूतो बैदेहिल ख़ैर,
व हुवा अला कुल्ले शैयिन क़दीर
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لاَ إِلہَ إِلاَّ اللهُ وَحْدَہُ لاَ شَرِیکَ لَہُ، لَہُ
الْمُلْکُ وَلَہُ الْحَمْدُ، یُحْیِی وَیُمِیتُ وَیُمِیتُ
وَیُحْیِی، وَھُوَ حَیٌّ لاَ یَمُوتُ، بِیَدِہِ الْخَیْرُ،
وَھُوَ عَلَی کُلِّ شَیْءٍ قَدِیرٌ
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दूसरा :
इन्ही हज़रत की मातेबर रिवायत में यह भी वारिद हुआ है की तलु व गरूब से
पहले
10
मर्तबा यह दुआ पढो : |
मैं श्यातीन के वसूसों से सुनने जाने वाले ख़ुदा की पनाह का तलबगार हूँ और
खुदा की पनाह चाहता हूँ और इस से की वोह मेरे करीब आयें,
बेशक अल्लाह ही सुनने और जान्ने वाला है |
अ'उज़ो
बिल्लाहे अल्स'समीयोल
अलीम मिन हमाज़ातिश श्यातीन व अ'उज़ो बिल्लाहे
अ'अन
यह्ज़रून,
इन्नल लाहा हुवस समीयुल अलीम
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أَعُوذُ بِاللهِ السَّمِیعِ الْعَلِیمِ مِنْ ھَمَزَاتِ الشَّیَاطِینِ وَأَعُوذُ
بِاللهِ أَنْ یَحْضُرُونَ، إِنَّ اللهَ ھُوَ السَّمِیعُ الْعَلِیمُ
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तीसरा :
आँ'जनाब
से मन्कूल है की तुम्हारे लिए क्या रुकावट है की सुबह व शाम यह दुआ पढ़ लिया
करो |
ऐ दिलों और आँखों के मिन्काब करने वाले खुदाए पाक मेरे दिल को अपने दीं पर
जमा दे इसके बाद मेरे दिल को टेढा न कर जब तूने मुझे हिदायत दी है,
मुझ पर अपनी तरफ से रहमत नाजिल फरमा,
इसमें शक नहीं की तू बड़ा ही अता करने वाला है और अपनी रहमत से मुझे आग से
बचा और महफूज़ रख,
ऐ अल्लाह मेरी उमर तवील कर
दे,
मेरे रिजक में वुस'अत
पैदा कर दे और मुझ पर अपनी रहमत का साया फरमा दे और अगर मैं लौहे महफूज़ में
तेरी नज़र में बदबख्त हूँ तो मुझे नेक बख्त बना दे,
यकीनन तू जो चाहे मिटाता और लिखता है और लौहे महफूज़ तेरे पास है |
अल्लाहुम्मा मुक़ल्लिब अल-क़ुलूब वाल-अब्सारे सब्बित क़ल्बी अला दीनिक व ला
तुज़ी'अ
क़ल्बी बा'अदा
इज़'हादैतनि
व हब्ली मिन ला'दुन्का
रहमता इनक्का अंतल वहाबो,
व अ'अजर-नी
मिनन नार बे रहमतिका,
अल्लाहुम्मा अम्दुद ली फी उमरी वा औसे-अ अलिय्या फी रिज़की व
अंशुर अलैय्या रहमतिका व इन कुन्तो इन्दका फी उम्मिल किताबे शफ़ी'यन
फ'अज'अलनी
सईदन
फ'इन्नका
तम्हौ मा-तशा-अ व तुस्बतो व इनदका उम्मुल किताब |
اَللّٰھُمَّ مُقَلِّبَ الْقُلُوبِ وَالْاَ بْصَارِ ثَبِّتْ
قَلْبِی عَلَی دِینِکَ، وَلاَ تُزِغْ قَلْبِی بَعْدَ إِذْ
ھَدَیْتَنِی وَھَبْ لِی مِنْ لَدُنْکَ رَحْمَةً إِنَّکَ
أَنْتَ الْوَہَّابُ، وَأَجِرْنِی مِنَ النَّارِ
بِرَحْمَتِکَ اَللّٰھُمَّ امْدُدْ لِی فِی عُمْرِی
وَأَوْسِعْ عَلَیَّ فِی رِزْقِی، وَانْشُرْ عَلَیَّ
رَحْمَتَکَ وَ إِنْ کُنْتُ عِنْدَکَ فِی أُمِّ الْکِتابِ
شَقِیّاً فَاجْعَلْنِی سَعِیداً، فَإِنَّکَ تَمْحُو مَا
تَشَاءُ وَتُثْبِتُ، وَعِنْدَکَ أُمُّ الْکِتابِ
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चौथा :
आँ'जनाब
से मरवी है की सुबह शाम यह दुआ पढ़े |
सारी तारीफ़ इस अल्लाह के लिए है की जो वोह चाहे करता है और सीके सिवा कोई
नहीं जो चाहे कर पाए,
सारी तारीफ अल्लाह के लिए है की जैसी तारीफ़ वोह पसंद करता है,
और सारी
तारीफ अल्लाह के लिए है जैसा की वोह इसका अहल है,
ऐ माबूद! मुझे हर इस नेकी में दाख़िल फरमा जिसमें तूने मोहम्मद व आले
मोहम्मद को दाखिल फरमाया है और मुझे हर इस बुराई से बचा की जिस से तूने
मोहम्मद व आले मोहम्मद को महफूज़ व मामून रखा,
खुदा की रहमत हो मोहम्मद व आले मोहम्मद पर,
अल्लाह पाक है,
सारी तारीफ़ें इसी के लिए हैं और अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और अल्लाह
ही बुज़ुर्गतर है |
अलहम्दो लील'लाहिल
लज़ी यफ़'अलो
मा यशा'ओ
वला यफ'अलो
मा यशा-ओ गैरोहू अलहम्दो लिल्लाहे कमा युहिब्बो अल्लाहो अ'अन
युहमादा,
अलहम्दो लिल्लाहे कमा हुवा अहलोहू,
अल्लाहुम्मा अद'खिल्नी
फी कुल्ले खैरिन अद'खल्ता
फ़ीहे मोहम्मदन व आले मोहम्मदीन,
व अ'अखरिज्नी
मं कुल्ले शर्रा-अ अख़'रजता
मिन्हो मोहम्मदन व आले मोहम्मदीन सल'लल'लाहो
अला मोहम्मदीन व आले मोहम्मदीन,
सुबहान अल्लाहे वाल हम्दो लिल्लाहे व ला इलाहा इलल लाहो वल लाहो अकबर |
اَلْحَمْدُ للهِ الَّذِی یَفْعَلُ مَا یَشَاءُ، وَلاَ یَفْعَلُ مَا یَشَاءُ
غَیْرہُ، الْحَمْدُ لِلّٰہِ کَمَا یُحِبُّ اللهُ أَنْ یُحْمَدَ، الْحَمْدُ
لِلّٰہِ کَمَا ھُوَ أَھْلُہُ ۔ اَللّٰھُمَّ أَدْخِلْنِی فِی کُلِّ خَیْرٍ
أَدْخَلْتَ فِیہِ مُحَمَّداً وَآلَ مُحَمَّدٍ، وَأَخْرِجْنِی مِنْ کُلِّ شَرٍّ
أَخْرَجْتَ مِنْہُ مَحَمَّداً وَآلَ مُحَمَّدٍ، صَلَّی اللهُ عَلی مُحَمَّدٍ
وَآلِ مُحَمَّدٍ۔سُبْحَانَ اللهِ، وَالْحَمْدُ للهِ، وَلاَ إِلہَ إِلاَّ اللهُ،
وَاللهُ أَکْبَرُ
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