ईमाम ज़ैनुल
आबेदीन (अ:स) - दुआ
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अल्लाहूम्मा सल्ले अला मोहम्मदीन व आले मोहम्मद.
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शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत
रहम वाला है |
बिस्मिल्लाह अर'रहमान अर'रहीम |
بِسْمِ اللهِ الرَحْمنِ الرَحیمْ |
अल्लाहूम्मा सल्ले अला मोहम्मदीन व आले मोहम्मद.
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हम्द ईस ख़ुदा के लिये जिस ने अपनी क़ुदरत से तरीक रात क़ो ख़तम किया और रेशन दिन
क़ो अपने रहमत से वुजूद
बख़शा!
और
मुझ
पर
भी
रेशनी
बिखेरी
और मै इसकी नेमत
से मुस्तफीद
होता
हूँ! ऐ माबूद! जिस तरह तुने मुझे
आज
के
दिन
ज़िंदा
रखा
इसी
तरह
आ'इन्दा
भी ज़िंदा रख और अपने नबी मुहम्मद (स:अ:व:व) और इनकी आल (अ:स) पर रहमत फरमा और मुझे
आज और दूसरी रातों और दिनों में हराम काम करने और गुनाह कमाने से दाग़दार न बना,
आज के
दिन में जो भलाई है और बाद में आने वाले दिनों में जो भलाई है अता फ़रमा,
और मुझे ईस दिन के शर जो कुछ इसमें है
इसके शर और इसके बाद भी शर
से बचा! ऐ माबूद! मै इस्लाम के ज़रिये से तेरी तरफ़ वासेला पकड़ता हूँ और क़ुरान के
एहतराम के साथ तुझ पर भरोसा करता हूँ,
और मुहम्मद मुस्तफ़ा (स:अ:व:व)
क़ो
तेरे
हुज़ूर
अपना
शफ़ी
बनाता
हूँ
-
बस ऐ
माबूद! जिस ज़मानत के
साथ मै
अपनी हाजत-रवा का
मुहताज हूँ ईस पर तवज्जह फ़रमा,
ऐ
सबसे ज़्यादा रहम करने वाले - ऐ माबूद! ईस जुमारात में मेरी पांच हाजात पूरी फ़रमा
की सिवाए तेरे करम के कोई इसकी
गुंजाइश नहीं रखता और सिवाए तेरी नेमतों के कोई इसकी ताक़त नहीं रखता,
ऐसी सेहत व
सलामती अता फ़रमा जिसके ज़रिये
से तेरी अता'अत
पर क़ुव्वत हासिल
हो,
ऐसी इबादत की तौफीक़ दे जिस से मै तेरे अज़ीम सवाब का हक़दार बन जाऊं,
रिज़्के हलाल से मेरी हालत में कुशादगी
फ़रमा,
खौफ़ व ख़तरे के मौकों पर अपने अमान के
ज़रिये
महफूज़
फ़रमा,
ग़म व
अलाम के
हुजूम में मुझे अपनी पनाह में रख,
और मुहम्मद
(स:अ:व:व)
व आले मुहम्मद
(अ:स)
पर रहमत फ़रमा और इनमे से
मेरे लिये तवस्सुल क़ो क़यामत के रोज़ नफ़ा देने वाला शफ़ी
बना क्योंकि तू सब से ज़्यादा रहम करने वाला है
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अलहम्दु लील’लाहिल
लज़ी अज़'हबल
लयला मुज़’लीमन
बी-क़ुद'रतिही
व जा-अ बिन नहारी मुब'सिरन
बी'रहमतेही
व कासानी ज़ीया-अहू |
व अना फ़ी ने’मतिही
अल्लाहुम्मा फ़कामा अब'कय'तनी
लहू फ़-अब'
क़ीनी ली-इम्सालेही व सल्ली'अलन
नबिय्यी मुहम्मदीन व आलेही व ला |
तफ़जा’-अनी
फ़ीही व फ़ी गै'रिही
मिनल लयाली वल अय्यामी ब'अर-तिकाबिल
मह’आरिम
वक-तिसाबिल मा'आसिम
वर-ज़ुक़नी |
ख़य'राहू
व ख़यरा मा फ़ीही व ख़य'रा
मा बा’दहू
व'अस’रीफ़
अन्नी शर्राहू व शर्रा मा फ़ीही व शर्रा मा बा’दहू
अल्लाहुम्मा इन्नी |
बी'ज़िम्मातिल
इस्लामी अतावस'सलु
इलयका व बिह’उर्मतिल
क़ुरानी आ’तमिदु
अलयका व बी'
मुहम्मद'इनिल
मुस्तफ़ा सल |
अल'लाहु
अलैहे व आलेही व सल्लम अस्तश फ़ि-उ’लदैका
फ़ा’रिफ़ी
अल्लाहुम्मा ज़िम'मतियल
लती रजाव्तु बिहा क़ज़'आ-अ
हाजा'ती
या अर्हमर |
राहिमीन अल्लाहुम'अक़'ज़ी
ली फ़िल ख़मीसी ख़मसा ला यत्तासी-उ’
लहा इल्ला करामुका व ला युत-ई'क़ुहा
इल्ला |
नि-अ’मुका
सला’मतन
अक़वा बिहा अ’ला
त’आ-अतिका
व
इबादतन अस-तह’ईक़'क़ु
बिहा जज़ीला मसुव'बतिका
व सा-अतन फ़िल |
हाली मिनर रिज़'क़िल
हलाल व अन सुव-मीनानी फ़ी मवा'क़ीफ़िल
खौफ़ि बी-अमनिका व तज-अल्नी मिन तवारीक़'ईल
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हुमूमी वल गुमू'मी
फ़ी ह’ईस’निका
व सल्ली अला मुहम्मदीन व आली मुहम्मद वज-अल तवस'सूली
बिही शाफ़ी-अन |
यौमल क़िया'मति
नाफ़ी-अ’अ
इन्नका अन्ता अर'हमुर
राहिमीन |
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اَلْحَمْدُ لِلّٰہِ الَّذِی أَذْھَبَ اللَّیْلَ مُظْلِماً بِقُدْرَتِہِ، وَجَاءَ
بِالنَّھَارِ مُبْصِراً بِرَحْمَتِہِ وَکَسَانِی ضِیائَہُ
وَأَ نَا فِی نِعْمَتِہِ۔ اَللّٰھُمَّ فَکَمَا أَبْقَیْتَنِی لَہُ فَأَبْقِنِی
لاِمْثالِہِ، وَصَلِّ عَلَی النَّبِیِّ مُحَمَّدٍ وَآلِہِ، وَلاَ
تَفْجَعْنِی فِیہِ وَفِی غَیْرِہِ مِنَ اللَّیَالِی وَالْاَیَّامِ، بِارْتِکَابِ
الْمحَارِمِ وَاکْتِسَابِ الْمَآثِمِ وَارْزُقْنِی
خَیْرَہُ وَخَیْرَ مَا فِیہِ وَخَیْرَ مَا بَعْدَہُ، وَاصْرِف عَنِّی شَرَّہُ،
وَشَرَّ مَا فِیہِ، وَشَرَّ مَا بَعْدَہُ ۔ اَللّٰھُمَّ إِنِّی
بِذِمَّةِ الْاِسْلامِ أَتَوَسَّلُ إِلَیْکَ،وَبِحُرْمَةِ الْقُرْآنِ أَعْتَمِدُ
عَلَیْکَ، وَبِمُحَمَّدٍ الْمُصْطَفی صَلَّی
اللهُ عَلَیْہِ وَآلِہِ أَسْتَشْفِعُ لَدَیْکَ، فَاعْرِفِ اَللّٰھُمَّ ذِمَّتِیَ
الَّتِی رَجَوْتُ بِھَا قَضَاءَ حَاجَتِی، یَا أَرْحَمَ
الرَّاحِمِینَ۔ اَللّٰھُمَّ اقْضِ لِی فِی الْخَمِیسِ خَمْساً لاَ یَتَّسِعُ لَھا
إِلاَّکَرَمُکَ وَلاَ یُطِیقُھا إِلاَّ
نِعَمُکَ، سَلاَمَةً أَقْوی بِھَا عَلَی طَاعَتِکَ، وَعِبادَةً أَسْتَحِقُّ بِہا
جَزِیلَ مَثُوبَتِکَ،وَسَعَةً فِی
الْحَالِ مِنَ الرِّزْقِ الْحَلاَلِ، وَأَن تُؤْمِنَنِی فِی مَوَاقِفِ الْخَوْفِ
بِأَمْنِکَ،وَتَجْعَلَنِی مِنْ طَوَارِقِ
الْھُمُومِ وَالْغُمُومِ فِی حِصْنِکَ وَصَلِّ عَلَی مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ
وَاجْعَلْ تَوَسُّلِی بِہِ شَافِعاً،
یَوْمَ الْقِیامَةِ نَافِعاًإِنَّکَ أَ نْتَ أَرْحَمُ الرَّاحِمِینَ۔
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अल्लाहूम्मा सल्ले अला मोहम्मदीन व आले मोहम्मद.
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जुमा और शबे जुमा की
फ़ज़ीलत : वाज़े है की जुमा क़ो तमाम दिनों पर एक ख़ास
इम्तेयाज़ और बढ़ोतरी और दर्जा हासिल है, इसी कारणवश हज़रत रसूल अल्लाह
(स:अ:व:व) का फ़रमान है की शबे जुमा व जुमा क़ो 24 लम्हें है और हर
एक लम्हा में ख़ुदावंद आलम 6 लाख इंसानों क़ो जहन्नम से आज़ाद करता है
- ईमाम जाफ़र सादीक़ (अ:स) का इरशाद है की ज़वाल जुमारात से ज़वाल
जुमा के दरम्यान जिस शख्स क़ो मौत आ जाए वो फ़िशारे क़ब्र से आज़ाद मह'फ़ूज़
रहेगा! हज़रत ही का फ़रमान है की जुमा का ख़ास एहतराम और हक़ है! ईस हक़
क़ो बर्बाद न करो और ईस दिन की इबादत में कोताही न करो! अच्छे अमाल
से ख़ुदा की नज़दीकी हासिल करो और तमाम कामों क़ो तर्क करो क्योंकि
खुदाए ताला ईस रोज़ इता'अत का सवाब बढ़ा देता है! गुनाहों की सज़ा
खत्म कर देता है, और दुन्या व आख़ेरत में मोमिनों के दर्जात क़ो
बुलंद करता है, और इसी प्रकार जुमे के दिन की तरह शबे जुमा की भी बहुत फ़ज़ीलत
है, और मुमकिन हो तो शबे जुमा सुबह तक दुआ और नमाज़ में गुज़ारो! शबे
जुमा में ख़ुदा मोमिनीन की इज़्ज़त क़ो बढ़ाने के लिये मलाएका क़ो
पहले आसमान पर भेजता है ताकि वो इनकी नेकियों में बढ़ोतरी करें और इनके गुनाह
मिटा डालें! इसकी वजह यह है की हक्क़े तआला रहीम ओ करीम है और इनकी
इनायतें और अताएँ वसी'अ (बहुत फैली हुई और बड़ी है) हैं! बहुत मा-तेबर हदीस
में रसूल अल्लाह (स:अ:व:व) से ब्यान है की कभी ऐसा भी होता है की
एक मोमिन अपनी हाजत के लिये दुआ करता है मगर ख़ुदा उसकी वो हाजत पूरी
करने में देर करता है ताकि रोज़े जुमा इसकी हाजत क़ो पूरा करे और
जुमा की फ़ज़ीलत की वजह से कई गुनाह माफ़ कर देता है! फिर
फ़रमाया के जब युसूफ (अ:स) के भाइयों हज़रत याक़ूब (अ:स) से कहा की
वो इनके गुनाहों की माफ़ी के लिये दुआ करें तो उनहोंने फ़रमाया :
"सौफ़ा असतग़-फ़िर लकुमा रब्बी" के जल्दी ही मै तुन्हारे गुनाहों
की बख्शीश के लिये ख़ुदा से दुआ करूंगा, यह देर इसलिए की गयी के
जुमा की सुबह की दुआ की जाए ताकि वो क़बूलियत तक पहुंचे! हज़रत (अ:स)
के निस्बत में यह भी कहा गया है की शबे जुमा मु मछलियाँ सर पानी से
बाहर निकालती हैं और रेगिस्तानी जानवर अपनी गर्दनें ऊंची करके बारगाहे इलाही
में अर्ज़ करते हैं की ऐ परवरदिगार इंसानों के गुनाहों की वजह से
हम पर अज़ाब न करना! ईमाम मुहम्मद बाक़र (अ:स) फ़रमाते हैं की हर शबे
जुमा एक फ़रिश्ता शब् के शुरू होने से शब् के आख़िर तक अर्श के ऊपर से
यह आवाज़ करता है की कोई मोमिन बन्दा है जो फ़ज्र के होने से पहले
दुन्या व आख़ेरत की कोई हाजत तलब करे ताकि मै इसकी हाजत पूरी कर
दूँ! है कोई मोमिन बन्दा जो फ़जर होने से पहले गुनाहों की माफ़ी का
तलबगार हो, और मै इसके गुनाह माफ़ कर दूँ, कोई ऐसा बंद है की जिस
की रोज़ी मै ने तंग कर रखी हो वो सुबह होने से क़ब्ल मुझ से रोज़ी
में तरक्क़ी मांगे और मै इसकी रोज़ी में तरक्क़ी कर दूँ, कोई बीमार
मोमिन है जो मुझ से सुबह के पहले शिफ़ा का तालिब हो तो मै इसे शिफ़ा
दे दूँ, कोई क़ैदी व ग़म'जादा मोमिन है जो सुबह जुमा से पहले मुझ
से सवाल करे तो मै इसको क़ैद से रिहाई दे कर इसका ग़म दूर करूँ, कोई
मज़लूम मोमिन है जो सुबह से पहले ज़ालिम के ज़ुल्म क़ो दूर करने का
मुझ से सवाल करे तो मै इसके लिये हर ज़ुल्म करने वाले से बदला लूँ
और इसका हक़ इसे दिला दूँ, बस वो फ़रिश्ता जुमा की सुबह होने तक इसी
तरह आवाज़ देता रहता है! अमीरुल मोमिनीन (अ:स) से मन्कूल है की हक्क़े
तआला ने जुमा क़ो तमाम दिनों पर फ़ज़ीलत दी है और इसको रोज़े ईद
क़रार दिया है, इसी तरह सबे जुमा क़ो भी बा-अज़्मत क़रार दिया है,
जुमा की एक फ़ज़ीलत यह है की ईस रोज़ ख़ुदा से कोई सवाल किया जाए
वो पूरा कर दिया जाता है अगर कोई गिरोह अज़ाब का मुस्तहक़ है लेकिन
अगर वो शबे जुमा या रोज़े जुमा दुआ करे तो इसे अज़ाब से छुटकारा मिल
जाता है हक्क़े तआला रोज़े जुमा क़ो मुक़ददर क़ो मोहकम और पार/खराब
न होने वाला बना देता है, ईस प्रकार शबे जुमा आम रातों से और रोज़े
जुमा आम दिनों से अफज़ल है! हज़रत ईमाम जाफर सादीक़ (अ:स) फ़रमाते
हैं, "शबे जुमा में गुनाहों से बचो क्योंकि ईस रात कई गुना अज़ाब बढ़
जाता है, जैसा की ईस शब् में नेकियों का सवाब भी कई गुना बढ़ जाता है,
अगर कोई शख्स शबे जुमा में गुनाह से परहेज़ करे तो ख़ुदा इसके पिछले
गुनाह माफ़ कर देता है, और अगर कोई शख्स शबे जुमा में एलानिया गुनाह
करे तो ख़ुदा इसको सारी ज़िंदगी के गुनाहों के बराबर अज़ाब देगा और
ईस गुनाह का अज़ाब भी ज़्यादा होगा, और मातेबर सनद के साथ हज़रत ईमाम
अली रज़ा (अ:स) से मन्कूल है की रसूल अल्लाह (स:अ:व:व) ने फ़रमाया
: "जुमा का दिन तमाम दिनों का सरदार है, ईस में नेकियों का सवाब कई
गुना होता है! जो शख्स ईस दिन ख़ुदा क़ो पुकारे और वो ईस दिन की
इज़्ज़त व अज़्मत का क़ायेल (मानने वाला) भी हो तो ख़ुदा पर इसका हक़
है की वो इसे जहन्नम की आग से छुटकारा अता करे, अगर कोई शख्स शबे
जुमा या रोज़े जुमा में वफ़ात पा जाए तो वो शहीद गिना जाएगा और
क़यामत के दिन अज़ाबे इलाही से महफूज़ रहेगा! जो आदमी जुमा के दिन
की अज़्मत की परवाह न करे और इसके हक़ क़ो ज़ाया करे उदाहरण स्वरुप
नमाज़े जुमा बजा न लाये, या हराम कामों से न बचे, ख़ुदा के लिये
ज़रूरी है की वो ईस शख्स क़ो जहन्नम का इंधन बनाए मगर यह की वो तौबा
कर ले, मातेबर हदीस के साथ ईमाम मोहम्मद बाक़र (अ:स) से हदीस है
की, "आफ़ताब ने कभी किसी ऐसे दिन क़ो त'लू'अ (नहीं निकाला) किया जो
जुमा से बेहतर हो, ईस रोज़ जब परिंदे एक दुसरे से मिलते हैं तो
सलाम करते हैं और कहते हैं की आज बड़ा ही अज़ीम दिन है! दूसरी मातेबर
हदीस के साथ ईमाम जाफ़र सादीक़ (अ:स) से कौल ही की जो शख्स जुमा
के दिन क़ो रोक कर इबादत इलाही के अलावा कुछ न करे की ईस दिन ख़ुदा
त'आला अपने बन्दों के गुनाह माफ़ करता है और इनपर रहमते ख़ुदा वंदी नाज़िल
होती है! हक़ तो यह है की शबे जुमा और रोज़े जुमा के फज़ायेल कसीर हैं
और ईस मुख़्तसर किताब में इतनी गुंजाइश नहीं की ईन सब की छान - बीन
की जाए! |
शबे जुमा के ख़ास अमाल |
शबे जुमा के अमाल बहुत ज़्यादा हैं, इसी कारण
हम यहाँ कुछ अहम् अमाल का ही ज़िक्र कर रहे हैं
पहले तो यह याद रहे की शबे जुमा रात का नूर और
जुमा का दिन सबसे ज़्यादा रौशन दिन है, इसी कारण ईस रात और दिन
में जितना मुमकिन हो सके दरूद अल्लाह हुम्मा सल्ले अला
मुहम्मदीन व आले मुहम्मद भेजें, और निचे लिखी
हुए ज़िक्र क़ो पढ़ें
|
पाक और बुज़ुर्ग'तर है ख़ुदा और
ख़ुदा की सिवा कोई ईबादत के लायेक़ नहीं |
सुबहान अल्लाहे वल-लाहो अकबर व ला ईलाहा
ईल'लल लाहो
|
سُبْحَانَ اللهِ وَاللهُ أَکْبَرُ وَلاَ إِلہَ إِلاَّ اللهُ ۔
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एक और रिवायत में है की ईस रात कम से कम सौ (100)
मर्तबा दरूद पढ़ें और जिस क़दर ज़्यादा पढ़ सकें बेहतर है! ईमाम जाफ़र
सादीक़ (अ:स) से मुराद है की शबे जुमा में मुहम्मद (:स:अ:व:व) और
आले मुहम्मद (अ:स) पर दरूद भेजने से हज़ार नेकियों का सवाब मिलता
है, हज़ार गुनाह माफ़ होते हैं, और हज़ार दर्जे बुलंद हो
जाते हैं, मुस्तहब है की जुमा'रात की असर से जुमे के रोज़ के आख़िर
तक मुहम्मद (:स:अ:व:व) और आले मुहम्मद (अ:स) पर ज़्यादा से ज़्यादा
दरूद भेजें, और ईमाम अल-सादीक़ (अ:स) से यह भी मन्कूल है की
जुमा'रात की असर क़ो मलाइका आसमान से उतारते हैं, और
इनके
हाथों में तला'ई क़लम और
नुक़'राइ कागज़
होता है! और वो इसमें
जुमा'रात की असर से रोज़े जुमा के आख़िर तक मुहम्मद (:स:अ:व:व) और
आले मुहम्मद (अ:स) पर भेजे गए दरूद के अलावा कुछ नहीं लिखते! शेख़ तुसी (अ:र) फ़रमाते हैं की
जुमा'रात के दिन मुहम्मद (:स:अ:व:व) और आले मुहम्मद (अ:स) पर एक हज़ार (1000)
मर्तबा दरूद पढ़ना मुस्तहब है और बेहतर है की ईस तरह दरूद
पढ़ें
|
ऐ
माबूद मुहम्मद (स:अ:व:व) और इसकी आल (अ:स) पर रहमत फ़रमा और इनके
ज़हूर में ताजील फ़रमा और मुहम्मद (स:अ:व:व) और आले मुहम्मद (अ:स)
के दुश्मनों क़ो हालाक कर ख्वाह वो जिन्न
हैं या इंसान अव्वलीन से हैं या आख़ेरीन से
|
अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदीन व आली मुहम्मद व अज'जिल फ़रा'जहुम
व अहलिक अदुव्वा-हुम मिनल जिनने वल ईन्स मिनल अव्वालीना वल आखेरीन |
اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلی مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ وَعَجِّلْ
فَرَجَھُمْ، وَأَھْلِکْ عَدُوَّھُمْ مِنَ الْجِنِّ
وَالْاِنْسِ
مِنَ الاَوَّلِینَ وَالاْخِرِینَ۔
|
जुमारात की असर के बाद स रोज़े जुमा तक के आख़िर तक
नीचे लिखे हुए दरूद का सौ (100) बार पढ़ना बहुत फ़ज़ीलत रखता है,
इसके बाद शेख़ फ़रमाते हैं की जुमारात क़ो आखिरी हिस्से में ईस तरह
ईसतग़फ़ार करना मुस्तहब है: |
ईस
ख़ुदा
स
तलबे
मग़'फ़ेरत
हूँ
जिसके
सिव
कोई
माबूद
नहीं,
जो
ज़िंदा व
पा'इन्दा है,
म
इसके
हुज़ूर
ऐस
बन्दे
क
तरह
तौब
करत
हूँ
जो
ज़लील,
मोहताज और बेचारा है
जो अपने
कारोबार,
दफ़ा-अ,
और नफ़ा और
नुक़सान का
मालिक नहीं,
अपनी मौत ज़िन्दगी और
क़यामत के दिन अपने
नषर
व
हशर
पर
कुछ
अख्तयार
नहीं
रखता
और
मुहम्मद (स:अ:व:व)
और उनकी पाक-ओ-पाकीज़ा और
नेक-ओ-पाक'बाज़
आल
पर
ख़ुदा की
रहमत और
सलाम हो,
जिस तरह इनपर सलाम
का हक़ हो |
अस'तग़ फ़िरूल लाह अल-लज़ी ला
ईलाहा इल्ला हुवा अल-हय्यु अल-क़'य्युमो व अतुबू इलैही तौबता अब्दीन ख़ाज़ी-ईन मिसकी'निन
मुस्ता'किनिन
ला
ईस'ताती
अ'उ ली
नफ़सीही
सर'फ़न
वला
अदलन
व
ला
नफ़-अन
व
ला
ज़र'रन
वला
हयातन
वला
मौतन
वला
नुशुरण
व
सल
अल'लाहू
अला
मुहम्मदीन
व
ईत'रतीही
अल-तय्यिबीना
अल-ताहीरिना
अल-अख़'
यारी
अल-अबरारी
व
सल'लमा
तस्लीमन
|
أَسْتَغْفِرُ اللهَ الَّذِی لا إِلہَ إِلاَّ ھُوَ الْحَیُّ
الْقَیُّومُ، وَأَتُوبُ إِلَیْہِ تَوْبَةَ عَبْدٍ خاضِعٍ
مِسْکِینٍ مُسْتَکِینٍ،
لاَ یَسْتَطِیعُ لِنَفْسِہِ صَرْفاً وَلاَ عَدْلاً وَلاَ نَفْعاً
وَلاَ ضَرّاً وَلاَحَیَاةً وَلاَ مَوْتاً وَلاَ نُشُوراً، وَصَلَّی
اللهُ عَلَی مُحَمَّدٍ وَعِتْرَتِہِ الطَّیِّبِینَ الطَّاھِرِینَ
الْاَخْیارِ الاَبْرارِ وَسَلَّمَ تَسْلِیماً ۔ |
शबे जुमा में क़ुरान की ईन सुरों की तिलावत करना चाहिए के इनमें
से हर एक के बहुत फ़ायेदे हैं और इनका सवाब बहुत ज़्यादा है! :
(1)
सुराः बनी इसराईल
सुराः संख्या-17) (2)
सुराः अल-कहफ़
(सुराः संख्या-18) (3) तीन सुराः जो "ता-सीन" से
शुरू होती है जैसे सुराः अल-शु'अरा (सुराः
संख्या-26)
सुराः अल-नमल (सुराः
संख्या-27) और
सुराः अल क़सस
(सुराः संख्या-28) (4) सुराः अल-सज्दाह
(सुराः संख्या-32) (5) सुराः यासीन (सुराः
संख्या-36) (6) सुराः साद
(सुराः संख्या-38) (7)
सुराः अल-अह'क़ाफ़ (सुराः
संख्या-46) (8)
सुराः अल-वाक़िया
(सुराः संख्या-56) (9) सुराः फ़ूस्सिलात
(सुराः संख्या-41) (10) सुराः अल-दु'ख़ान (सुराः
संख्या-44) (11)
सुराः अल-तूर
(सुराः संख्या-52) (12) सुराः अल-क़मर
(सुराः संख्या-54) (13) सुराः अल-जुमु'अ
(सुराः संख्या-62) . -
इन
सब सुरों
की
तिलावत
का सवाब
बहुत
ज़्यादा
है,
पर
अगर
वक़्त की
कमी
हो
तो
सुराः अल-वाक़िया और
इसके
पहले
लिखी हुई सुरों
की
तिलावत
करे क्योंकि ईमाम जाफ़र अल-सादीक़ (अ:स) से मन्कूल
है
की
जो
शख्स हर
शबे
जुमा सुराः बनी
इसराईल
की
तिलावत
करेगा तो
इसे ईमाम
अल-असर
(अ:त:फ़)
की
ख़िदमत
में
हाज़री नसीब होने
से
क़ब्ल
मौत
नहीं आएगी और
वो
वहां हुज़ूर (अ:स)
के
असहाब
में
से
होगा,
फिर
फ़रमाया
की
शबे
जुमा
में
सुराः
कहफ़
की
तिलावत
करने
वाला मुर्दा नहीं
बल्कि
शहीद
होगा
और
क़यामत
में
हक्क़े-ता'अला
इसको
शहीदों
के
साथ
महशूर
करेगा
और
वो
इन्हीं
के
साथ
रहेगा!
जो
शख्स
जुमा
क़ो
"ता-सीन"
वाली
तीन
सुरों
क़ो
पढ़ेगा
वो
ख़ुदा
का
दोस्त
शुमार
होगा,
इसे
ख़ुदा
की
हिमायत
व
अमान
हासिल
होगी,
दुन्या
में
फ़िक्र-ओ-तंग-दस्ती
से
महफूज़
रहेगा
आख़ेरत
क़ो
बहिश्त
में
ईस
क़दर
नेमतें
मिलेंगी
के
वो
राज़ी
व
ख़ुश
हो
जाएगा!
फिर
ख़ुदा
इसे
ईस
की
रज़ा
से
भी
ज़्यादा
अता
फ़रमायेगा
और
सौ
(100)
हूरें
ईस
की
ज़ु'जियत
में
रहेंगी,
आप
(अ:स)
ने यह
भी
फ़रमाया
की
जो
शख्स
हर
शबे
जुमा
में
सुराः
अल-सजदह पढ़ेगा
तो क़यामत
में
खुदाये
ता'आला इसका
नामा-ए-अमाल
इसके
दायें हाथ
में देगा,
ईस
से
इसके
आमाल के
हिसाब
किताब
नहीं
लिया जाएगा और
वोह मुहम्मद
(स:अ:व:व)
और
आले
मुहम्मद (अ:स) के
दोस्तों
में
शुमार
होगा.
मातेबर हदीसों
के
अनुसार ईमाम
मुहम्मद
अल-बाक़र (अ:स)
फ़रमाते हैं
की
जो
शख्स
शबे
जुमा
में
सुराः
साद
की
तिलावत
करेगा
तो
इसको
दुन्या
व
आख़ेरत
की
भलाई
अता
होगी
और
इसे
इतना अजर दिया
जाएगा
जितना किसी
नबी-ए-मुर्सल
(अ:स)
या मुल्के'मुक़र्रिब
क़ो
दिया जाता
है!
वो
खुद
बहिश्त
में
जाने
के
साथ
साथ
अपने
अहले
खाना
में
से जिसे चाहे हत्ता के
अपने
खिदमतगार क़ो भी
बहिश्त
में
ले जा सकेगा अगरचे वो खिदमतगार
ईस
शख्स
के
अयाल
में
शामिल
न हो
और
इसकी शिफ़ा'अत के
दायेरे
में
न
आता
हो!
ईमाम
जाफ़र
अल-सादीक़
(अ:स)
से
मन्कूल
है
की
जो
शख्स
शबे
जुमा
या
रोज़े जुमा
में
से
सुराः
अहक़ाफ़
की
तिलावत
करे
तो
वो
दुन्या
में
खौफ़-ओ-ख़तर
और
आख़ेरत
में
रोज़े
क़यामत
के
खौफ़
व
परेशानी
से अमन
में होगा!
फिर
फ़रमाया
की
जो शख्स
हर
शबे
जुमा
में
सुराः
वाक़ीया
पढ़े तो
अल्लाह क़ो
अपना दोस्त बनाएगा,
दुन्या
में
बद'हाली
व
तंग'दस्ती
और
आफ़ात
से
महफूज़
रहेगा!
अमीरुल
मोमिनीन
(अ:स)
के
दोस्तों
में
शुमार
होगा
के
यह
सुराः,
हुज़ूर
(अ:स)
से
मंसूब
व
मख्सूस
है!
रिवायत है
की
जो
शख्स
हर
शबे
जुमा
में
सुराः
जुमा-अ
की
तिलावत
करे
तो
वो
ईस
जुमा
और
आने
वाले
जुमा
के
बीच
में इसका कफ़्फारा
गिना जाएगा,
हर
शबे
जुमा
में
सुराः
कहफ़
पढ़ने
की भी
यही
फ़ज़ीलत
ब्यान
हुई
है,
इसी
तरह
जो
शख्स
जुमा
की
ज़ोहर व
असर के
बाद सुराः
कहफ़
की
तिलावत
करे
तो
इसके
लिये
भी
यही
फ़ज़ीलत
नक़ल हुई
है!
शबे जुमा में पढ़ी जाने वाली बहुत सी नमाज़ों क ज़िक्र हुआ
है, इनमें मख्सूस है की
पहला :
नमाज़े अमीरुल मोमिनीन
(अ:स) पढ़े - यह दो रक्'अत नमाज़ है और
इसकी हर रक्'अत में
सुराः हम्द
(सुराः संख्या 1) के बाद
सुराः अज़-ज़िलज़ाल (सुराः
संख्या 99) पढ़ी जाती है! रिवायत है की ईस नमाज़ क़ो
पढ़ने वाला क़ब्र के अज़ाब और क़यामत के हवल्नाक से
महफूज़ रहेगा!
दूसरा : किसी क़िस्म क
शेर पढ़ना तर्क कर दें क्योकि सही'अ हदीस में ईमाम जाफ़र
अल-सादीक़ (अ:स) से मन्कूल है की रोज़े के साथ, हरम में,
एहराम की हालत में, और शबे जुमा व रोज़े जुमा क़ो शेर पढ़ना
मकरूह है! रावी ने अर्ज़ किया की चाहे शेर किता ही हक़ पर
क्यों न हो? ईमाम (अ:स) ने फ़रमाया शेर अगर हक़ हो तो भी
ईस से परहेज़ करो! मातेबर हदीस में ईमाम जाफ़र अल-सादीक़ (अ:स)
से मन्कूल है की रसूल अल्लाह (स:अ:व:व) ने फ़रमाया, "जो
शख्स शबे जुमा या रोज़े जुमा में एक शेर भी पढ़े तो वो ईस
रात और दिन, इसके सिवा किसी और सवाब से मह्जूज़ न होगा, एक
और रिवायत में है की ऐसे शख्स की ईस रात और दिन की नमाज़
क़बूल नहीं होगी!
तीसरा : मोमिनीन के हक़ में
ज़्यादा से ज़्यादा दुआ करें जैसे जनाबे फ़ातिमा ज़हरा (स:अ) किया
करती थीं, और अगर मरहूम मोमिनीन में से दस के लिये
मग़फ़ेरत की दुआ करे तो (एक रिवायत के मुताबीक़) ऐसे शख्स के लिये
जन्नत वाजिब हो जाती है
चौथा : शबे जुमा क़ो वो दुआएं
पढ़ें जो वारिद हुई हैं, इनकी तादाद बहुत ज़्यादा है यहाँ हम इनमे
से चंद एक क तज़किरा सहीह-अ ईमाम जाफ़र अल-सादीक़ (अ:स) की
मुनासेबत से करते हैं की जो शख्स शबे जुमा नाफ़ेला मग़रिब के
आखरी सजदे में सात (7) मर्तबा यह दुआ पढ़े तो ईस अमल से फ़ारीग़
होने से पहले इसके सारे गुनाह माफ़ हो चुके होंगे, अगर हर शब् ईस
दुआ क़ो पढता रहे तो और भी बेहतर है, यह दुआ ईस प्रकार है
|
ख़ुदा'वंदा मै तेरी करीम
ज़ात और
तेरे
बरतर
नाम
के वास्ते से
सवाल करता हूँ
के मोहम्मद (स:अ:व:व) व आले
मोहम्मद (अ:स) पर रहमत
नाज़िल
फ़रमा
और
मरे
बड़े
बड़े
गुनाहों
क़ो
बख्श दे
|
अल्लाहुम्मा अस-अलुका
बी'वज-हिकल
करीम
व
असमिकल अज़ीमी
अन
तू'सल्ले
अला
मोहम्मदीन व
आले
मोहम्मदीन
व अन तग़'फ़िरा
ल
ज़म'
बियल
अज़ीम |
اَللّٰھُمَّ إِنِّی أَسْأَ لُکَ بِوَجْھِکَ الْکَرِیمِ،
وَاسْمِکَ الْعَظِیمِ، أَنْ تُصَلِّیَ عَلی مُحَمَّدٍ وَآلِ
مُحَمَّدٍ، وَأَنْ تَغْفِرَ لِی ذَ نْبِیَ الْعَظِیمَ ۔
|
रसूल अल्लाह (स:अ:व:व) से मन्कूल है के जो शख्स शबे जुमा
या रोज़े जुमा यह दुआ सात (7) मर्तबा पढ़े और अगर ईस रात या
ईस दिन इसको मौत आ जाए तो जन्नत में दाख़िल होगा! यह दुआ
नीचे लिखी है |
ऐ माबूद !
तू ही मेरा रब है
तेरे सिवा कोई माबूद नहीं तुने ही मुझे पैदा किया और मै
तेरा
बंदा और तेरी कनीज़ का बेटा
हूँ और तेरे क़ब्ज़े में हूँ मेरी
मेहार तेरे दस्ते क़ुदरत
में
है,
मैंने तेरे
अहद-ओ-पैमान पर रात गुज़ारी,
जितना हो सके मै
तेरी रज़ा की पनाह चाहता हूँ इसके शर से जो मैंने अंजाम
दिया है तेरी नेमत का
हार और मेरे गुनाह
क बोझा मेरे
कंधे पर है बस मेरे गुनाह माफ़ फ़रमा दे,
तेरे सिवा कोई गुनाहों
क़ो माफ़ नहीं कर सकता |
अल्लाहुम्मा
अन्ता रब'बी
ला ईलाहा अन्ता
ख़-लक़तनी व अना अब्दोका व
आबनू अमातिका
व फ़ि क़बज़ा-तिका व
नासी'यती
बी'यादिका अम'सय्तु
अला अहदिका व वा'दिका मा ईस'ता-तू
अ
उज़ो
बी'रीज़ाका
मिन शर्री
मा सनातु
अबू'उ
बी'निमातिका व
अबू'उ
बे'जंबी
फ़ अग़'फ़िरली
ज़ुनूबी इन्नाहु ला
यग़फ़िरु अज़-ज़ुनूबा इल्ला अन्ता
|
اَللّٰھُمَّ أَنْتَ رَبِّی لاَ إِلہَ إِلاَّ أَ نْتَ
خَلَقْتَنِی وَأَ نَا عَبْدُکَ وَابْنُ أَمَتِکَ، وَفِی
قَبْضَتِکَ وَناصِیَتِی
بِیَدِکَ، أَمْسَیْتُ عَلَی عَھْدِکَ وَوَعْدِکَ مَا
اسْتَطَعْتُ أَعُوذُ بِرِضاکَ مِنْ شَرِّ مَا صَنَعْتُ،
أَبُوءُ بِنِعْمَتِکَ، وَأَبُوءُ بِذَنْبِی، فَاغْفِرْ لِی
ذُنُوبِی إِنَّہُ لاَ یَغْفِرُ،الذُّنُوبَ إِلاَّ أَنْتَ۔
|
शेख़ तूसी,
सैययद, कफ़'अमी, और सैययद इब्ने बाक़ी फ़रमाते हैं की शबे जुमा,
रोज़े जुमा, शबे अरफ़ा, रोज़े अरफ़ा, यह दुआ पढ़ना मुस्तहब है! हम
ईस दुआ क़ो शेख़ की किताब "मिस्बाह" से नक़ल कर रहे हैं |
 |
ख़ुदाया
जो
भी
अता
व
बख्शीश
के
लिये
जाने
क़ो
आमादा
और
मुस्तैद
हो
ईस
की
उम्मीद
इसी
पर
लगी
होती
है,
तो
ऐ
मेरे
परवरदिगार मेरी
आमादगी व
तय्यारी तेरे
अफ़ु व
दर गुज़र तेरी
बख्शीश
और
तेरे
इनाम के
हुसूल के
उम्मीद
पर
हैं
बस
मेरी
दुआ
क़ो
मायूस
न
कर
ऐ
वो
ज़ात
जिस
से
कोई
सायेल
मायूस
नही
होता
किसी
का
हासिल
करना
इसकी
अता
क़ो
कम
नहीं
कर
सकता
है
बस
मै
ने
जो
अमल
सालेह
किया
इसके
भरोसे
पर
तेरी
जनाब
में
नहीं
आया
और
न
ही
मख़लूक़
के
दीन की
उम्मीद
रखता हूँ,
मै
तो
अपनी बुराइयों और
ज़ुल्म
क
इक़रार
करते
हुए तेरी
बारगाह
में
हाज़िर
हुआ
हूँ
और
एतराफ़
करता
हूँ
की
मै
कोई
हुज्जत और
उज़र
नहीं
रखता
हूँ
मै
तेरे
हुज़ूर
अफ़ु
व
अज़ीम
की
उम्मीद
ले
कर
आया
हूँ
जिस
से
तू
ख़ताकारों
क़ो
माफ़
फ़रमाता है
की
इनके बड़े
गुनाहीं
क
तसलसुल तुझे इनपर
रहमत
करने
से
बाज़
नहीं
रख
सकता
तो
ऐ
वो
ज़ात
जिसकी रहमत
आम और
अफ़ु
व
बख्शीश
अज़ीम
है
खुदाए
अज़ीम
खुदाए
अज़ीम
खुदाए
अज़ीम
तेरा
ग़ज़ब
तेरे
ही
हिल्म
से
पलट
सकता
है
और
तेरी
नाराज़गी तेरे
हुज़ूर
नाला व
फ़रयाद से
ही
दूर
हो
सकती है,
तो
ऐ
मेरे
ख़ुदा
मुझे
अपनी
क़ुदरत
से
कशाइश अता कर
जिस
से
तू
उजड़े हुए
शहरों क़ो
आबाद करता
है
मुझे
ग़मगीनी में
हालाक न
कर
यहाँ तक
की
तू
मेरी
दुआ
क़ो
क़बूल
करले और
दुआ
की
क़बूलियत
से
मुझे
आगाह फ़रमा
दे,
मुझे
आख़िर
दम तक
सेहत व
आफ़ियत से
रख
और
मेरे
दुश्मन क़ो
मेरी
बुरी हालत
पर
ख़ुश
न
होने
दे
और
इसे
मुझ
पर
तसल्लुत और
अख्त्यार न
दे
ऐ
परवरदिगार!
अगर
तू
मुझे
गिरा दे
तो
कौन
मुझे
उठाने
वाला
है
और
अगर
तू
मुझे
बुलंद करे
तो
कौन
है
जो
मुझे
पस्त कर
सकता
है
अगर
तू
मुझे
हालाक
करे
तो
कौन
तेरे
बन्दे से
मूत'अल्लिक़
तुझे
कुछ कह
सकता
है,
इसके
मूत'आलिक सवाल
कर
सकता
है,
बेशक
मै
जानता हूँ
के
तेरे
फ़ैसले
में
ज़ुल्म नहीं
और
तेरे
अज़ाब
में
जल्दी
नहीं
और
बेशक
जल्दी
वो
करता
है
जिसे
वक़्त
निकल
जाने
का
डर
हो
और
ज़ुल्म
वो
करता
है
जो
कमज़ोर हो
और
ऐ
मेरे
माबूद!
तू
ईन
बातों
से
बहुत
बुलंद
और
बहुत
बड़ा है,
ऐ
माबूद!
मै
तेरी
पनाह
लेता हूँ
तू
मुझे
पनाह
दे
तेरे
नज़दीक आता
हूँ
मुझे
नज़दीक
|
अल्लाहुम्मा
मन
ता-अब'बा-अ
व
तहय्या-अ
व
अ-अद'दा वास्ता-अद'दा
ली'वी-फ़ा'दतिन
इला मख़लूक़ीन
रजा-अ
रफ़-दही व
तलाबा
ना'इलिही व
जा'इज़ातिही
फ़-इलैका या
रब'बा
ताबियाती वसते-अ'दादी
रजा-अ
अफ़-विका व
तलाबा
ना-इलिका व
जा-इ'ज़तिका
फ़ला तू-खय्यिब
दुआई
या
मन
ल यख़-इबु
अलैहे सायेलुन
व
ला
यन'क़ु-सुहू ना'इलून
फ़
इन्नी
लम आतिका सीक़ातन
बे
अमलिन सालिहीन
अमिल्तुहू व
ल
लिवा-फ़'दाती
मख़लूक़ुन
रा'जौ-तुहू आतै-तुका मुक़ीर-रन
अला
नफ़सी
बिल ईसा-अती वल्ज़-ज़ुल्मी
म'तरीफ़न
बी-अन
ला
हुज-जता ली
वला उज़रा
आतै-तुका
अरजु अज़ीमा
अफ़'विका
अल-लज़ी अफ़'वता
बिही अणि-अल
ख़ाते-ईना
फ़'लम
यमना का
तुलु
उकु'फ़िहिम
अला
अज़ीमी
अल-जुरमी अन
उदता
अलैहिम बिल
रहमती फ़या
मन
रह'मतोहू वासी-अतुन
व
अफ़'वुहु आज़ीमुन
या
अज़ीमो
या
अज़ीमो
या
अज़ीमो
ला
यारुददु
ग़ज़ाबिका इला हिल्मुका व
ला
युंजी मिन
सख़तिका
इल्ला
अल्त-तज़र-रु
इलैका
फ़हब
ली
इलाही फ़रजन
बिल-क़ुदरती-ल
लती तुह-यी बहा
मैता
अल-बिलादी
वला
तुह-लिक्नी ग़म-मन
हत्ता
तस'तजीबा
ली
व
तू
अर'रिफ़ानी
अल-इजाबता फ़ि
दुआई व
अ'ज़ीक़नी त-अम
अल-आफ़ियती
इला
मुन्तहा
अजली व
ला
तुशमित
बी
अदू-वी वला
तू-सल्ली'तुहू
अलय्या
व
ला
तू'मक-किनहू
मिन
उनुक़ी
अल्लाहुम्मा
ईन
वज़ा'तनी फ़मन
ज़ल-लज़ी
यर'फ़-उनी व
ईन
रफ़'अतनी
फ़मन
ज़ल-लज़ी यज़ा'उनी
व
ईन
अहलक'तनी
फ़मन ज़ल-लज़ी यअ'रिज़ू
लका फ़ि
अब्दिका औ यस-अलुका
अन
अम्रिही व
क़द अलिम्तु
अन्नाहू लैसा
फ़ि
हुक्मिका ज़ुल्मुन
व
ल
फ़ि
नक़'मतिका
अजल्तुन
व
इन्नमा या
जलु मन
यख़ाफ़ू
अल-फौता
व
इन्नमा
यह'तजू
इला
अल्ज़-ज़ुल्मी
अल-ज़'ईफ़ो
व
क़द'तालैता या
इलाही
अन'ज़ालिका
उलुव्वन
कबिरण अल्लाहुम्मा
इन्नी
अ-उज़ो
बिका
फ़ा-अ-इज़्नी
व
अस्ताजीरू बिका
फ़ि
अजिरनी
व
अस्तर-ज़ी'क़ु'का
फ़'अरज़ुक़नी
व
अता-वक'कलू
अलैका फ़'अकफ़िनी
व
अस्तन'सिरुका अला
अदुव्वी फ़'अन्सुरनी व
असता'इनु
बिका
फ़-अ
इन्नी
व
अस'तग़फ़िरुका या
इलाही
फ़'अग़-फ़िर्ली आमीन
आमीन
आमीन
|
اَللّٰھُمَّ مَنْ تَعَبَّأَ وَتَھَیَّأَ وَأَعَدَّ
وَاسْتَعَدَّ لِوِفَادَةٍ إِلَی مَخْلُوقٍ رَجَاءَ رِفْدِہِ
وَطَلَبَ نائِلِہِ وَجائِزَتِہِ،
فَإِلَیْکَ یَا رَبِّ تَعْبِیَتِی وَاسْتِعْدادِی رَجَاءَ
عَفْوِکَ وَطَلَبَ نائِلِکَ وَجَائِزَتِکَ فَلاَ تُخَیِّبْ
دُعَائِی
یَا مَنْ لاَ یَخِیبُ عَلَیْہِ سائِلٌ وَلاَ یَنْقُصُہُ
نائِلٌ، فَإِنِّی لَمْ آتِکَ ثِقَةً بِعَمَلٍ صَالِحٍ
عَمِلْتُہُ، وَلاَ
لِوَفادَةِ مَخْلُوقٍ رَجَوْتُہُ، أَتَیْتُکَ مُقِرّاً عَلَی
نَفْسِی بِالْاِسائَةِ وَالظُّلْمِ، مُعْتَرِفاً بِأَنْ لاَ
حُجَّةَ لِی
وَلاَ عُذْرَ، أَتَیْتُکَ أَرْجُو عَظِیمَ عَفْوِکَ الَّذِی
عَفَوْتَ بِہِ عَنِ الْخاطِئِینَ، فَلَمْ یَمْنَعْکَ طُولُ
عُکُوفِھِمْ عَلی عَظِیمِ الْجُرْمِ أَنْ عُدْتَ عَلَیْھِمْ
بِالرَّحْمَةِ، فَیَا مَنْ رَحْمَتُہُ واسِعَةٌ، وَعَفْوُہُ
عَظِیمٌ،
یَا عَظِیمُ یَاعَظِیمُ یَا عَظِیمُ، لاَ یَرُدُّ غَضَبَکَ
إِلاَّ حِلْمُکَ وَلاَ یُنْجِی مِنْ سَخَطِکَ إِلاَّ
التَّضَرُّعُ
إِلَیْکَ فَھَبْ لِی یَا إِلھِی فَرَجاً بِالْقُدْرَةِ الَّتِی
تُحْیِی بِھَا مَیْتَ الْبِلاَدِ، وَلاَ تُھْلِکْنِی غَمّاً
حَتَّی
تَستَجِیبَ لِی، وَتُعَرِّفَنِی الْاِجابَةَ فِی دُعَائِی،
وَأَذِقْنِی طَعْمَ الْعَافِیَةِ إِلَی مُنْتَہی أَجَلِی،
وَلاَ تُشْمِتْ
بِی عَدُوِّی، وَلاَ تُسَلِّطْہُ عَلَیَّ، وَلاَ تُمَکِّنْہُ
مِنْ عُنُقِیاَللّٰھُمَّ إِنْ وَضَعْتَنِی فَمَنْ ذَا الَّذِی
یَرْفَعُنِی وَ إِنْ رَفَعْتَنِی فَمَنْ ذَا الَّذِی یَضَعُنِی
وَ إِنْ أَھْلَکْتَنِی فَمَنْ ذَا الَّذِی یَعْرِضُ لَکَ فِی
عَبْدِکَ أَوْ یَسْأَلُکَ عَنْ أَمْرِہِ وَقَدْ عَلِمْتُ
أَنَّہُ لَیْسَ فِی حُکْمِکَ ظُلْمٌ، وَلاَ فِی نَقِمَتِکَ
عَجَلَةٌ،وَ إِنَّمَا یَعْجَلُ مَنْ یَخَافُ الْفَوْتَ وَ
إِنَّمَا یَحْتاجُ إِلَی الظُّلْمِ الضَّعِیفُ، وَقَدْ
تَعالَیْتَ یَا
إِلھِی عَنْ ذَلِکَ عُلُوّاً کَبِیراً اَللّٰھُمَّ إِنِّی
أَعُوذُ بِکَ فَأَعِذْنِی، وَأَسْتَجِیرُ بِکَ فَأَجِرْنِی، وَ
أَسْتَرْزِقُکَ فَارْزُقْنِی وَأَتَوَکَّلُ عَلَیْکَ
فَاکْفِنِی، وَأَسْتَنْصِرُکَ عَلی عَدُوِّی فَانْصُرْنِی،
وَأَسْتَعِینُ
بِکَ فَأَعِنِّی، وَأَسْتَغْفِرُکَ یَا إِلھِی فَاغْفِرْ لِی،
آمِینَ آمِینَ آمِینَ ۔ |
अल्ला हुम्मा सल्ले अला मुहम्मद
व आले मुहम्मद
|
छठा : शबे अरफ़ा में पढ़ी
जाने वाली वो दुआ पढ़ें जो ज़िल-हिज्ज के अमाल में दर्ज है,
वो दुआ ईस प्रकार है
अल्लाहुम्मा या शाहेदा कुल्ले नजवा
(
اَللّٰھُمَّ یَا شَاھِدَ کُلِّ نَجْویٰ۔),
ऐ ख़ुदा! ऐ सब राजों के जान्ने वाले.......पूरी
दुआ पढ़ने के लिए क्लिक करें
|
सातवाँ : दस
(10) मर्तबा यह ज़िक्र कहें - और यह ज़िक्रे शरीफ़ ईद-उल
फ़ितर में भी पढ़ा
जाता है
|
ऐ
वो
ज़ात
जिस
क
एहसान
मख्लूक़
पर हमेशा है ऐ
वो
जिसके दोनों हाथ अता के
लिये खुले हुए हैं,
ऐ
बड़ी नेमतें देने वाले!
ख़ुदा
वंदा
मुहम्मद (स:अ:व:व)
और आले
मोहम्मद
अ:स
पर
रहमत
फ़रमा,
जो
मख़लूक़ात
में
सब
से बेहतर
हैं,
अस्ल
फ़ितरत
हैं
और
ऐ
बुलंदियों के
मालिक ईस रात
में
मेरे
गुनाह
क़ो बख्श दे |
या
दा'ईमा
अल-फ़ज़ले
अला अल-बरी'यते
या
बासितो
अलिया'देनी
बिल
अती'यते
या
साहिबा अल-मवा'हिबी अल्स'सनी'यते
सल्ले
अला
मोहम्मदीन
व
आलेही
खैरी
अल-वरा
सजी'यतन
व
अग़फ़िर
लना
या
ज़ल-उला फ़ि
हा'ज़िही
अल-अशि-यते
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یَادائِمَ الْفَضْلِ عَلَی الْبَرِیَّةِ، یَابَاسِطَ
الْیَدَیْنِ بِالْعَطِیَّةِ، یَاصَاحِبَ الْمَوَاھِبِ
السَّنِیَّةِ
صَلِّ عَلَی مُحَمَّدٍ وَآلِہِ خَیْرِ الْوَرَیٰ سَجِیَّةً،
وَاغْفِرْ لَنا یَا ذَا الْعُلیٰ فِی ھَذِہِ الْعَشِیَّةِ ۔
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आठवां
: अनार खाएं जैसा की ईमाम जाफ़र अल-सादीक़ (अ:स) हर
शबे जुमा अनार नोश फ़रमाते थे, अगर सोते वक़्त खाएं तो (शायेद) बेहतर
होगा, जैसा की रिवायत में है की जो शख्स सोते वक़्त अनार खाए तो
सुबह तक इसका जिस्म व जान अमन में रहेगा! मुनासिब होगा की अनार
खाते वक़्त कोई रुमाल या काग़ज़ बिछा ले ताकि दाने इकट्ठे करे
और फिर खाए और बेहतर यह है की अपने अनार में किसी क़ो शरीक न करे!
शेख़ जाफ़र बिन अहमद क़ुममी (अ:र) ने किताबे उरूस में ईमाम
जाफ़र अल-सादीक़ (अ:स) से रिवायत की है की हक्क़े त'आला ईस
शख्स क़ो जन्नत में एक महल अता करेगा जो सुबह की नमाज़े नाफ़िला
व फ़रीज़ा के दरम्यान सौ (100) मर्तबा कहे :
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पाक
है
मेरा
रब'बे
अज़ीम
और
हम्द
ईस
की
है,
मै अपने
रब
से
मग़फ़ेरत का
तालिब
हूँ और
ईस
के
हुज़ूर
तौबा करता
हूँ |
सुभाना
रब'बी
अल
अज़ीम
व
बे
हम्देही
असतग़-फ़िरुल्लाह रब'बी
व
अतूबो इलैही
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سُبْحَانَ رَبِّی الْعَظِیْمِ وَبِحَمْدِہِ اَسْتَغْفِرُاللهَ
رَبِّی وَاَتُوْبُ اِلَیٰہِ ۔
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शेख़
व सैययद व दुसरे बुज़ुर्गों क फ़रमान है की शबे जुमा सेहरी के
वक़्त यह दुआ पढ़ें |
ऐ
माबूद!
मुहम्मद
(स:अ:व:व)
और
आले
मोहम्मद
(अ:स)
पर
रहमत
नाज़िल फ़रमा,
आज
की
सुबह मुझे अपनी
रज़ा
अता
फ़रमा
मेरे
दिल क़ो
अपने
खौफ़ से
भर
दे
और
इसे
अपने
ग़ैर
से
हटा
दे
ताकि तेरे सिवा
किसी
से
उम्मीद
और
खौफ़
न
रखूं!
खुदाया! मुहम्मद
(स:अ:व:व)
और
आले
मोहम्मद
(अ:स)
पर
रहमत
फ़रमा
और
मुझे
यक़ीन
में
पुख़तगी और
ख़ुलूसे
कामिल
अता
फ़रमा,
यकता
परस्ती का
शरफ़ बख्श
दे
और
हमेशा
की
साबित क़दमी
से
नवाज़ और
सबर-ओ-रज़ा
का
खज़ाना
अता
कर की
जिस
से
क़ज़ा
व क़द्र पर
राज़ी
रहूँ,
ऐ
सायेलों की
हाजात बर लाने
वाले
ऐ
वो
जो
खामोश
रहने
वाले
की
मद'दुआओं
क़ो
जानता
है
मुहम्मद
(स:अ:व:व)
और
आले
मोहम्मद
(अ:स)
पर
रहमत फ़रमा
और
मेरी दुआ क़बूल फ़रमा,
मेरी
गुनाह
बख्श दे
मेरे
रिज्क़
में
फ़राक़ी पैदा
कर
दे
मेरे
और
मेरे
दीनी भाइयों
और
मेरे
अहले ख़ानदान
की
हाजात
क़ो
पूरी फ़रमा,
ख़ुदाया
तेरी
मदद के
बगैर
बड़ी
बड़ी
उम्मीदें न-तमाम
और
बुलंद हिम्मतें बे-फ़ायेदा
और
बेकार हो
जाती
हैं
और
तेरी
तरफ़
तवज्जह
के
बगैर
अकलों
की
जूलानियाँ
नारसा
रह
जाती
हैं
बस
तुही
उम्मीद
और
तू
ही
पनाहगाह
है,
औ बुज़ुर्गतर माबूद
और सखी-तर
दाता ऐ
पनाह
लेने
वालों
की
पनाहगाह
मै
अपने
गुनाहों
क़ो
बोझा के
साथ की जिसे
मै
अपने
पुष्ट
पर
उठाये हुए
हूँ
तेरी
तरफ़
भागते
हुए
आया
हूँ,
तेरे
हुज़ूर
मेरा
कोई
सिफारिशी
नहीं सिवाए
मेरी
ईस
मग़फ़ेरत
के,
तू
अहले
हाजत की
उम्मीदों के
बहुत ही
क़रीब
है
और
रग़'बत करने
वालों
क़ो
ढारस
देता है,
ऐ
वो
जिस
ने अकलों
क़ो
अपनी मग़फ़ेरत
के
लिये
खोला,
ज़बानों क़ो
अपनी
हम्द
पर
रवां किया और
बन्दों
क़ो
अपनी
हक़
की
अदाएगी की
हिम्मत देकर ईन
पर
एह्साने
अज़ीम
फ़रमाया
है
मुहम्मद
(स:अ:व:व)
और
आले
मोहम्मद
(अ:स)
पर
रहमत
फ़रमा
और
शैतान
क़ो
मेरी
अक़ल
में
आने
की
राह
न
दे
और
बातिल
क़ो
मेरे
अमल
व
किरदार
में
दाख़िल
न
होने
दे |
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اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلَی مُحَمَّدٍ وَآلِہِ وَھَبْ لِیَ
الْغَداةَ رِضَاکَ، وَأَسْکِنْ قَلْبِی خَوْفَکَ وَاقْطَعْہُ
عَمَّنْ
سِواکَ، حَتَّی لاَ أَرْجُوَ وَلاَ أَخافَ إِلاَّ إِیَّاکَ
اَللّٰھُمَّ صَلِّ عَلی مُحَمَّدٍ وَآلِہِ وَھَبْ لِی ثَباتَ
الْیَقِینِ، وَمَحْضَ الْاِخْلاصِ، وَشَرَفَ التَّوْحِیدِ،
وَدَوَامَ الاسْتِقامَةِ وَمَعْدِنَ الصَّبْرِ وَالرِّضَا
بِالْقَضَاءِ وَالْقَدَرِ یَا قَاضِیَ حَوَائِجِ السَّائِلِین
یَا مَنْ یَعْلَمُ مَا فِی ضَمِیرِ الصَّامِتِینَ صَلِّ عَلَی
مُحَمَّدٍ
وَآلِہِ وَاسْتَجِبْ دُعَائِی وَاغْفِرْ ذَ نْبِی، وَأَوْسِعْ
رِزْقِی، وَ اقْضِ حَوَائِجِی فِی نَفْسِی وَ إِخْوانِی
فِی دِینِیوَأَھْلِی۔ إِلھِی طُمُوحُ الْاَمالِ قَدْ خابَتْ
إِلاَّ لَدَیْکَ، وَمَعَاکِفُ الْھِمَمِ قَدْ تَعَطَّلَتْ
إِلاَّ
عَلَیْکَ وَمَذَاھِبُ الْعُقُولِ قَدْ سَمَتْ إِلاَّ إِلَیْکَ
فَأَنْتَ الرَّجَاءُ وَ إِلَیْکَ الْمُلْتَجَأُ یَا أَکْرَمَ
مَقْصُودٍ،
وَأَجْوَدَ مَسْؤُولٍ، ھَرَبْتُ إِلَیْکَ بِنَفْسِی یَا
مَلْجَأَ الْھَارِبِینَ بِأَثْقالِ الذُّنُوبِ أَحْمِلُھَا
عَلَی ظَھْرِی،
لاَ أَجِدُ لِی إِلَیْکَ شَافِعاً سِوی مَعْرِفَتِی بِأَنَّکَ
أَقْرَبُ مَنْ رَجَاہُ الطَّالِبُونَ، وَأَمَّلَ مَالَدَیْہِ
الرَّاغِبُونَ،
یَا مَنْ فَتَقَ الْعُقُولَ بِمَعْرِفَتِہِ وَأَطْلَقَ
الاْلَسُنَ بِحَمْدِہِ، وَجَعَلَ مَا امْتَنَّ بِہِ عَلَی
عِبَادِہِ فِی کِفَاءٍ
لِتَأْدِیَةِ حَقَّہِ صَلِّ عَلی مُحَمَّدٍ وَآلِہِ وَلاَ
تَجْعَلْ لِلشَّیْطَانِ عَلَی عَقْلِی سَبِیلاً، وَلاَ
لِلْباطِلِ عَلَی
عَمَلِی دَلِیلاً
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जुमा की सुबह
होने के बाद यह दुआ पढ़ें |
मैंने
सुबह की
है ख़ुदा की पनाह में और इसके फ़रिश्तों के ज़ेरे हिफ़ाज़त
और इसके अंबिया
और रुसल के
ज़ेरे हिमायत के
इनपर सलाम हो और मोहम्मद रसूल
अल्लाह (स:अ:व:व)
की सिपरदारी में और इनके जा'नशीनों की
निगरानी में
जो आले
मोहम्मद (अ:स)
में से हैं मै आले मोहम्मद (अ:स) के राज़ पर ए'ताक़ाद
रखता हूँ
और इनके अयाँ पर और इनके ज़ाहिर
और इनके
बातिन
पर और गवाही देता
हूँ की वो इल्मे इलाही क़ो जानते हैं और इसकी फ़रमा-बरदारी
में हज़रत मोहम्मद
(स:अ:व:व) की मानिंद हैं |
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أَصْبَحْتُ فِی ذِمَّةِ اللهِ، وَذِمَّةِ مَلائِکَتِہِ،
وَذِمَمِ
أَنْبِیائِہِ وَرُسُلِہِ عَلَیْھِمُ اَلسَّلاَمُ،وَذِمَّةِ
مُحَمَّدٍ صَلَّی اللهُ عَلَیْہِ وَآلِہِ، وَذِمَمِ
الْاَوْصِیاءِ مِنْ آلِ
مُحَمَّدٍ عَلَیْھِمُ اَلسَّلاَمُ ۔ آمَنْتُ بِسِرِّ آلِ
مُحَمَّدٍ عَلَیْھِمُ اَلسَّلاَمُ وَعَلاَنِیَتِھِمْ
وَظَاھِرِھِمْ
وَبَاطِنِھِمْ، وَأَشْھَدُ أَ نَّھُمْ فِی عِلْمِ اللهِ
وَطَاعَتِہ کَمُحَمَّدٍ صَلَّی اللهُ عَلَیْہِ وَآلِہِ۔
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रिवायत है
की जो शख्स नमाज़े सुबह के पहले तीन (3) मर्तबा यह विर्द करे
तो उसके गुनाह बख्श दिए जाते हैं चाहे वो दरया की झाग से भी
ज़्यादा क्यों न हों
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मै
ईस
ख़ुदा
से
मग़फ़ेरत
चाहता
हूँ
जिसके
सिवा
कोई
माबूद
नहीं
वो
हमेशा
ज़िंदा
व
क़ायेम
है,
इसके
हुज़ूर
तौबा
करता
हूँ |
असतग़-फ़िरुल्लाह अल-लज़ी
ला
इलाहा
इल्ला
हुवा
अल-हय्यो अल-क़य्युमो व
अतुबो इलैहे |
أَسْتَغْفِرُ اللهَ الَّذِی لاَ إِلہَ إِلاَّ ھُوَ الْحَیُّ
الْقَیُّومُ وَأَتُوبُ إِلَیْہِ ۔
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जुमारात के दुसरे अहम् अमाल |
सलात
1 शबे जुमा के लिये
ईस शाम की नमाज़ छः (6) रक्'आत हैं, हर
रक्'अत में सुराः हम्द के बाद एक-एक बार आयतल कुर्सी और
सुराः काफ़ेरून और तीन (3) बार सुराः तौहीद पढ़ें! नमाज़ के
बाद 3 बार आयतल कुर्सी पढ़ें. जो शख्स ईस नमाज़ क़ो पढ़ेगा तो अल्लाह इसके
लिये एक फ़रिश्ते क़ो कायम करेगा ताकि फ़रिश्ता उसको गुनाहों से पाक करे
और इसकी इसकी अच्छी क़िस्मत लिख सके और उसकी जो भी हाजात हों उन्हें
पूरी कर सके.
सलात
2 जुमारात के लिये
यह नमाज़ दो रक्'अत की है! हर रक्'अत में सुराः हम्द के बाद सुराः
अल-नसर और सुराः अल-कौसर पांच (5) बार पढ़ें, असर के वक़्त के बाद 40 बार
सुराः तौहीद पढ़ें और फिर 40 बार ईस'तग़फ़ार करें! इसका बहुत ही ज़्यादा
सवाब है जिसका कोई हिसाब नहीं
सलात
3 जुमारात के लिये
अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स:अ:व:व) फरमाते हैं की कोई
शख्स अगर जुमारात क़ो 10 रक्'अत नमाज़ पढता है जिसमे हर रक्'अत में सुराः
हम्द और सुराः तौहीद 10 बार पढ़ता है, तो फ़रिश्ता उससे कहता है की जो
भी चाहे मांगो और वो मिलेगा
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अल्लाहूम्मा सल्ले अला मोहम्मदीन व आले मोहम्मद.
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